वर्तमान का गीत
उजियारे को तरस रहा हूं, अँधियारे हरसाते हैं ! अधरों से मुस्कानें गायब, आंसू भर-भर आते हैं !! अपने सब
Read Moreउजियारे को तरस रहा हूं, अँधियारे हरसाते हैं ! अधरों से मुस्कानें गायब, आंसू भर-भर आते हैं !! अपने सब
Read More(1) क्षुधा ——- जो कभी भूखा न रहा वह क्या जाने ऐंठती आँतों का दर्द बंद होती आँखों का अंधेरा
Read Moreअँधियारे से लड़कर हमको,उजियारे को गढ़ना होगा ! डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !! पीड़ा,ग़म
Read Moreमाता सच में धैर्य है,लिये त्याग का सार ! प्रेम-नेह का दीप ले, हर लेती अँधियार !! पीड़ा,ग़म में भी
Read Moreदर्पण ने नग़मे रचे,महक उठा है रूप ! वन-उपवन को मिल रही,सचमुच मोहक धूप !! इठलाता यौवन फिरे,काया है भरपूर
Read Moreहमसे कहता पर्व हर , सदा विनत् हो भाव अहंकार की लुप्तता, निशिदिन सत्य प्रभाव धर्म सदा होता विजयी, शुभ-मंगलमय
Read Moreबिखरी हो जब गंदगी, तब विकास अवरुध्द घट जाती संपन्नता, बरकत होती क्रुध्द वे मानुष तो मूर्ख हैं, करें शौच
Read Moreरंगों के सँग खेलती, एक नवल- सी आस। मन में पलने लग गया, फिर नेहिल विश्वास।। लगे गुलाबी ठंड पर,
Read Moreनीर लिए आशा सदा, नीर लिए विश्वास। जल से सांसें चल रही, देवों का आभास।। अमृत जैसा है “शरद”, कहते
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