कविता : उफ़क़ पर
जब कभी तुम्हे कुछ पल मिले, अपने गैर जरूरी लम्हों से… उस पल, जब तुम भी खोये हो… मेरे
Read Moreजब कभी तुम्हे कुछ पल मिले, अपने गैर जरूरी लम्हों से… उस पल, जब तुम भी खोये हो… मेरे
Read Moreकुछ दिन से ये क्या हो रहा, मौंतो पर कविता गढ रहा। कहे प्रदीप क्या माजरा, लाशों
Read Moreचलो एकबार हमसब फिर देशी बन जाते हैं । सरसों के घानी तेल से मिट्टी के दीये जलातें हैं ।
Read Moreतुझे देख चांद जलता होगा चांदनी को तू चिढ़ाती होगी । सूरज को लाली देकर तू हवाओं को महकाती होगी
Read Moreछप्पन इंच के सीने ने ये कौन सा करतब दिखाया है । देखो आज पहली बार वृद्ध मां के खाते
Read Moreसावन की फुहार की बुन्दे अपने अन्दर शितलता का भण्डार लिए सभी जीव जन्तु के कल्याण हेतु लेकर उतर गई
Read Moreरिमझिम- रिमझिम बदरा बरसे। मोर-मोरनी के मनवा हरसे। आपस में खुला नृत्य करते हैं दोनों , लुप्त उठाते सभी पेड़-पौधे
Read More