कृष्ण फिर पुरानी यादों में खो गये। मथुरा से सभी यादवों को निकालकर सुरक्षित द्वारिका पहुंचाना बहुत कठिन कार्य था। परन्तु अनेक यादव युवकों के साहस और योजना से इसमें सफलता मिली। वहां पहुंचकर उन्होंने राहत की सांस ही ली थी कि पांडवों के जलकर मर जाने का संकट पैदा हो गया। इससे यादव सीधे […]
उपन्यास अंश
उपन्यास : शान्तिदूत (चौथी कड़ी)
सम्राट पांडु के बारे में सोचते हुए श्री कृष्ण उदास हो गये। नियति का कैसा क्रूर खेल था कि कुरुवंश के सर्वगुण सम्पन्न राजकुमार और सम्राट होने पर भी वे एक साधारण-सी भूल के कारण दुर्भाग्य से घिर गये, जिसके कारण उनका वंश सर्वनाश के निकट पहुँच गया। वन में आखेट करते समय उन्होंने एक […]
उपन्यास : शान्तिदूत (तीसरी कड़ी)
विराट नगर में अपने कक्ष में लेटे हुए कृष्ण की विचार श्रृंखला आगे बढ़ी। जब राजमाता सत्यवती ने समझ लिया कि उनको भीष्म की ओर से कोई उत्तराधिकारी मिलने वाला नहीं है, तो उन्हें प्राचीन नियोग प्रथा का स्मरण हुआ। यह प्रथा असाधारण संकट काल में संतानोत्पत्ति के लिए प्रयोग की जाती थी और अब […]
उपन्यास : शान्तिदूत (दूसरी कड़ी)
अब कृष्ण भीष्म के बारे में सोचने लगे। अत्यन्त कठोर प्रतिज्ञा करने और प्रत्येक परिस्थिति में उसका पालन करने के कारण राजकुमार देवव्रत अपने जीवनकाल में ही किंवदन्ती बन गये थे और भीष्म नाम से प्रख्यात हो गये थे। भीष्म ने प्रत्यक्ष भगवान परशुराम से धनुर्वेद की शिक्षा पायी थी और वे इतने महान् धनुर्धर […]
उपन्यास : शान्तिदूत (पहली कड़ी)
वासुदेव कृष्ण की आँखों में नींद नहीं थी। इतिहास एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा था। विगत के कालखंड का आगत के कालखंड से संधि का समय सामने था। शताब्दियों से भरतखंड पर एकछत्र शासन करने वाला कुरुवंश अपना अस्तित्व बचाने के लिए नियति से जूझ रहा था। कुरु साम्राज्य का पहले विभाजन हुआ और अब […]