देशी मुर्गी, विलायती बोल
मुझे आश्चर्य इस बात की है कि लेखकों से हिंदी और देवनागरी लिपि की अपेक्षा रखनेवाली एक पत्रिका ने मुझे
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Read Moreपटना में सब्जीबाग है, वहाँ न तो सब्जी है, न ही बाग ! फ़ख़्त सब्जबाग के !
Read Moreहर सुबह नए-नए ‘प्रयोग’ लेकर आता है और हर रात नूतन ‘अनुभव’ देकर जाती है !
Read Moreउस दिन वह सूर्यग्रहण देखने गए, पर चाँद को देख आए ! है न बॉयोस्कोप की बातें !
Read Moreदेह का भूगोल भूगर्भशास्त्र नहीं है, इतिहास नहीं है, वह साहित्य हो सकती है और केमिस्ट्री, फिजिक्स और जूलॉजी भी
Read Moreएक तो प्रकृति बरसा रही है और दूजे देह भी बरस रही है, पसीने के रूप में, स्वेद के रूप
Read Moreनरम-गरम धूप की आँख-मिचौली बारिश आ रही, जा रही ! आज की दिनचर्या बस यही !
Read Moreसाल में एक दिन पिता के सम्मान के लिए फादर्स डे और उसमें भी ग्रहण लग गई !
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