हमसे मिलने कभी तुम भी आया करो हमको ही मत हमेशा बुलाया करो हमने चाहा तुम्हे, की खता मान ली याद आके ना अक्सर रूलाया करो घर जला के वो करते हैं रोशन जहां लपटो से अपना घर भी बचाया करो फूल तुम भेजते हो सदा उनके घर अपना घर भी तो थोड़ा सजाया करो […]
गीतिका/ग़ज़ल
वो शख़्स
मुझको मुझसे ही मांगकर ले गया वो शख़्स । आंखों के रास्ते दिल में उतर गया वो शख़्स । करता रहा दिल से वो दिल्लगी पता न चला । न जाने कब लूटकर चला गया मुझे वो शख़्स । हर ख़ुशी अपनी मैंने तो न्योछावर कर दी उस पर । रातों को जागने की सज़ा मुझे दे गया वो शख़्स […]
ग़ज़ल
वो मुझे अपना लगे क्या कीजिए आप उसके हैं तो बतला दीजिए मैं जहाँ जाता हूँ वो पीछा करे क्यूँ न उसकी इस अदा पर रीझिए सामने आए तो कोई बात हो ऐसे आशिक का भला क्या कीजिए मेरी हर धड़कन में रहता है वही कैसे कोई साँस उस बिन लीजिए वो हो अमृत या […]
ग़ज़ल
इश्क़ वाजिब ठिकाना नहीं है इसलिए दिल लगाना नहीं है टीस थोड़ी है बाकी अभी तक दर्द इतना पुराना नहीं है जिनके हाथों में हरदम नमक हो चोंट उनको दिखाना नहीं है आईने सी हमारी ये फितरत पत्थरों को बताना नहीं है छोड़ जाएं कहाँ इस जहां को कोई दूजा ज़माना नहीं है ‘जय’ सहेजो […]
ग़ज़ल
प्यार के गांव में इश्क की छांव में ये जीवन गुजर जाए पास महबूब हो छांव हो धूप हो वो दिल में उतर जाए कुछ कहें कुछ सुनें चार बातें करें हम से वो एक दो मुलाकातें करें मेरे तन मन को महका दे इस कदर बनके खुशबू बिखर जाए एक वो चांद है एक […]
ग़ज़ल
जो रो नहीं सकता है वो गा भी नहीं सकता जो खो नहीं सकता है वो पा भी नहीं सकता | सीने में जिसके दिल नहीं, दिल में नहीं हो दर्द इन्सान वो शख़्स ख़ुद को बता भी नहीं सकता आंसू गिरे तो लोग राज़ जान जायेंगे अपनों का दिया ज़ख़्म दिखा भी नहीं सकता […]
गजल
ख्बाव के अंधेरे में उलझा हुआ इंसान है, रिश्तों की बात आई तो जल उठा इंसान है । चेहरे को जिस भीड़ में हमने हंसते देखा है, तन्हाई में उस चेहरे को सिसकते हुए देखा है । वक्त के थपेड़ों में सबको घिसटते देखा है, समय के साये में दिल टूटते हुए देखा है । […]
ग़ज़ल
रिश्ते ऐसे ढल गए कहते तू क्या है? खोटे सिक्के चल गए कहते तू क्या है? इक इक कर के जीवन के सरमाये से, हौले हौले पल गए कहते तू क्या है? कौन से खेत बिगाने की तू मूली है, ठग्गों को ठग छल गए कहते तू क्या है? अपने आपको समझते थे जो पाटे […]
गजल
उनके झूठ पर जो मौन साध लिया हमने, लोगों को लगा कि सच मान लिया हमने। हरिश्चंद्र बने फिरते जूठों के मसीहा जो, वाकिफ नहीं है कि सब जान लिया हमने। रंग बदलते गिरगिट थोडी़ सी तो शर्म करे, असली रंग जिनका पहचान लिया हमने। बेतुकी बातें कहके भूल जाते लोग शायद, हर बात को […]
गज़ल
आज़ बिगड़े हैं जो मेरे हालात तो कल फिर सुधर भी जाएंगेl जो लोग मेरी नजरों से गिर गए है वो मेरी निगाह में फिर चढ़ ना पाएंगेl जिस दिन बरसेगी जब ईमान की बारिश दाग दामन पे उनके बे हिसाब उभर आयेगेl हम अकेले ही सही पर इंसान लगते हैं लोग साथ आ गए […]