ग़ज़ल
खड़े थे खाई के आगे न बढ़ने की पड़ी हिम्मतअंधेरी रात थी इतनी कुआँ भी पीछे गहरा था शिकायत किससे
Read Moreजब साथ होता था, होले होले से मुस्कुराता था।आंखें कहती थीं,ज़ुबां से कुछ कह पाता न था।मैं भी पागल था
Read Moreउतर आया धरा सावन, जरा दिल खोल आने दो।धरा प्यासी ज़माने की, पिपासा को बुझाने दो।उठा है दर्द मिलने का,
Read Moreतुम्हारी ज़ुल्फ़ों की हंसी शाम मैं किस तरह भूलूँपहली नज़र ही आपकी उफ़ मैं किस तरह भूलूँ शौक था के
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