गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

उठती कहाँ हमारी नजर, अब किसी तरफ। नयनों में कैद कोई, दिखता है हर तरफ । मेरे  कदम  इशारों  के पायमाल  हैं। मिलते ही बढ़ चले हैं कदम ,मेरे उस तरफ। मिलने की मधुर याद लिए , मन हुआ मगन। बिछुड़न की उदासी  है ,होठों  पे ना  हरफ। कहते  हैं  पूर्वजन्म  के  संबंध  हैं   सभी […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मत सोचो कोई क्या सोचेगा जिसको जो समझना है ,वो समझेगा! मत सोचो कोई क्या कहेगा जिसको जो कहना है ,वो कहेगा! हर कोई हमें अच्छा समझे ये संभव तो नहीं होगा! नजर और नजरिया का फर्क हर कहीं नजर आएगा! एक का भला दूसरे का बुरा बन जाएगा एक का अच्छा दूसरे के लिए […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

दी हुई इस भंग से अब , कैसे में खुद को बचाऊँ आज देख तरंग से अब , कैसे मै खुद को बचाऊँ आज खेलूँ देख होली , शोर कितना अब मचा है रोगन मिले रंग से अब , कैसे मैं खुद को बचाऊँ इश्क़ रंगों से किया है, आज डर लगता इन्हीं से आज […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अपने चेहरे पे ताजगी रखिए । ग़म के साये में भी खुशी रखिए । जीत ही जाना प्रेम है ही नहीं, राह-ए-उल्फत में हार भी रखिए । भेद छुपता है कब छुपाने से, खुद को जो आप हैं वही रखिए । क्या ख़बर कौन कर रहा स्टिंग, दिल को हर वक्त लाॅक ही  रखिए । […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कभी जिसकी हुकूमत थी सातों आसमानों तक इश्क है अब वो  महदूद जिस्मों की दुकानों तक चर्चे  हैं  बहुत  जिनके  हवाएं  वो  तरक्की की देखें कब तक आती हैं  गरीबों  के ठिकानों तक वो  आए  भी  तो कैसे रास्ता ही जब नहीं कोई उस  पक्की  हवेली  से  इन  कच्चे मकानों तक वो कहते हैं कि  […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

थोड़ा और सियाना कर दे। माज़ी से अन्जाना कर दे। हरदम पीना भाता उनमें, आँखों को पैमाना कर दे। उल्फ़त के जो दुश्मन जग में, उन पर अब जुर्माना कर दे। और नहीं प्रतिद्वन्दी कोई, दाम अभी मनमाना कर दे। कहते इश्क़ उसे ही सच्चा, जो जग से बेगाना कर दे। — हमीद कानपुरी

गीतिका/ग़ज़ल

चाहिए

आदमी हूँ, मुझे और क्या चाहिए। आदमी से ज़रा सी वफ़ा चाहिए। लोग ख़ुदगर्ज़ हैं, जानता हूँ मगर, इक भले आदमी का पता चाहिए। भीड़ ही भीड़ के इस बियाबान में, थाम ले हाथ, ऐसा सगा चाहिए। कौन है जो परेशां नहीं इन दिनों, दर्द की हर बशर को दवा चाहिए। ऐ खुदा, है नशे […]

गीतिका/ग़ज़ल

बरसते मौसम

आंखों में ऐसे बस गए हैं ये बरसते मौसम दीदार की ख़्वाहिश में लम्हों को गिनते मौसम यादों के कारवां लिये गुज़िश्ता वक्त के उस ख़ुशनुमां मंज़र को फिर तरसते मौसम होने लगे वो आमद दस्तक दिये बिना के करके यूं आराईश से संवरते मौसम उनकी परस्तिश का इरादा है आरजू भी ये अनकहे जज़्बात […]

गीतिका/ग़ज़ल

मेहंदी

हथेलियों पे रच के मुस्कुरा रही है मेहंदी। तुम्हारे संग ये भी शरमा रही है मेहंदी। मरमरी हाथों से आती है प्यार की खुशबू, राजे मोहब्बत समझा रही है मेहंदी। मैं क्या मिसाल दूं इन गोरी हथेलियों की, मेरी निगाहों को बस भरमा रही है मेहंदी। कितनी खुशनसीब है जो ये हाथों पे छाई है, […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

भंवरे कलियां प्यार ग़ज़ल में लिखा कर । सावन खिजां बहार ग़ज़ल में लिखा कर ।। नारों में उलझा कर सत्ता की खातिर । क्या करती है सरकार ग़ज़ल में लिखा कर।।  कि झूठे वादों का तुम्हें चकमा दे देकर । किसने ठगा हर बार ग़ज़ल में लिखा कर ।। अब तक कितना कर्ज अदा […]