ग़ज़ल
कुछ धुंआ घर के दरीचों से उठा हो जैसे । फिर कोई शख्स रकीबों से जला हो जैसे ।। बादलों
Read Moreदरबारियों की टीम का हिस्सा नही हुआ मेरा तभी जहान में चर्चा नही हुआ यूँ तो मेरा रुका ही नही
Read Moreएक वही सबका पालक है क्या तुमको इसमें भी शक है नालायक तो है नालायक जो लायक है वो नायक
Read Moreइस तरह हम आजमाए जा रहे हैं हर क़दम काँटे बिछाए जा रहे हैं क्या ग़जब है तीरगी का साथ
Read Moreदुनियाँ के सफ़र में है हयात मुसाफ़िर भटक रही यहां पर है किसकी खातिर एक राह है आने की जाने
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