जब कलम को थामती मेरी ग़ज़ल है
जब क़लम को थामती, मेरी गज़ल है। खूब कहना जानती, मेरी गज़ल है। पूर होता जब गले तक सब्र-सागर तब
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Read Moreबड़े अज़ीब मकाँ उम्र भी दिखाती है कभी नसीब , कभी जिंदगी रूलाती है। खड़े दरख़्त मगर घूमती हुई छाया
Read Moreउजियारे का वंदन होगा , रोज़- रोज़ अभिनंदन होगा ! विजय माल ग्रीवा में होगी, औ’ माथे पर चंदन होगा
Read Moreजमाने को बताना मत वजह हसने व रोने की | अपनी हर हकीकत की अपने पाने व खोने की ||
Read Moreअँधेरी रात में भी भोर की आस रखना तुम | अँधेरा नित नहीं रहता यही विशवास रखना तुम || घृणा
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