गज़ल
मुकम्मल गर हमारी भी दुआ इस बार हो जाये तो मुमकिन है हमारी जिंदगी गुलज़ार हो जाए .. चलो
Read Moreखेल जो चल रहा मुहब्बत का ये नया ढंग है अदावत का हर किसी ने नकाब ओढा है झूठ पर
Read Moreभले कुछ कह रहे हो तुम सियासत और ही कुछ है तुम्हारी हर हकीकत की हकीकत और ही कुछ है
Read Moreटूटे हुए टुकड़ों को काश संभाला होता आशियाँ को अपने यूँ न जलाया होता गैरों को अपना बनाने की हसरत
Read Moreहम उजाले का सफ़र तय इस तरह करते रहे धूप में उगते रहे, खिलते रहे, तपते रहे। घिर गयी संवेदना
Read More