ग़ज़ल
मुझे अस्तित्व ने परखा बहुत है कि मैंने भी उसे सोचा बहुत है उसी का जिक्र करती हैं ये साँसें
Read Moreजिसको चाहा था तुम वही हो क्या? मेरी हमराह ज़िंदगी हो क्या? कल तो हिरनी बनी उछलती रही क्या हुआ
Read Moreप्यार का अजब सिला मिला हमको। होकर फिर वो जुदा मिला हमको। जिसकी आँखों में थी कभी ज़िन्दादिली; वो जब
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