“मुक्तक”
“मुक्तक” कितना मुश्किल कितना निश्छल, होता बचपन गैर बिना। जीवन होता पावन मंदिर, मूरत सगपन बैर बिना। किसकी धरती किसका
Read Moreछंद- वाचिक सोमराजी (मापनीयुक्त मात्रिक) मापनी- लगागा लगागा, 122 122 “सोमराजी छंद” मुक्तक या राम माया। मृगा हेम भाया। छलावा
Read More(1)सदियों से इस देश में, मरता रहा किसान। कितनी सस्ती है यहाँ,देखो इनकी जान। (2)कर्ज तले डूबा रहा,निर्धन हुआ किसान।
Read Moreगर्म बहुत हालात किये कुर्सी के पहरेदार ने। आरक्षण की खातिर मिलने वाले उस अधिकार ने। कौन धनी है ऋण
Read Moreछंद – हरिगीतिका (मात्रिक) मुक्तक, मापनी – 2212 2212 2212 2212 फैले हुए आकाश में छाई हुई है बादरी। कुछ
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