मुक्तक : सजाता हूँ मैं कविता को
सहज मन चेतना बन कर सुनाता हूँ मैं कविता को भ्रमर गुन्जित सज़ा आँगन दिखाता हूँ मैं कविता को नवल
Read Moreसहज मन चेतना बन कर सुनाता हूँ मैं कविता को भ्रमर गुन्जित सज़ा आँगन दिखाता हूँ मैं कविता को नवल
Read Moreविधाता छन्द= १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ निशा दिखती शमा जैसी – बहारो गीत गाओ तुम सुधा पीकर जिए लैला
Read Moreजब भी हम-आप किसी किताब को खोलते हैं और पढ़ते हैं, तो एक वृक्ष मुस्कुराकर संदेश देता है, कि मृत्यु
Read Moreकितनी राहत है चाहत में तेरे तुम्हें याद करने से ही हर ग़म दूर हो जाता है दर्द काफ़ूर हो
Read Moreज्यूँ सुन कर्कशा स्मर-दशा पाजेब धुन संगी परदेशी व्ययन रत्नप्रभा{1} >>>>>>>>>. म्हा नन्हीं सुयशा क्रोध-वशा ध्वनी पायल पहने डोलत
Read Moreआँख से अब नहीं दिख रहा है जहाँ, आज क्या हो रहा है मेरे संग यहाँ . माँ का रोना
Read Moreन मन में कोई रास है झरे झरे से पात हैं बची न कोई आस है ये कैसी उदास रात
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