ग़ज़ल
ज़िंदगी की राह में कुछ इस तरह खो गए,जैसे धूप में साये कहीं पीछे रह गए। हर मुस्कान के पीछे
Read Moreजहाँ हमारी सीमाओं पर तुम जैसे हों प्रहरी,नहीं किसी में है हिम्मत जो लाँघ सके है देहरी। जल थल नभ
Read Moreचलते हैं हम हँसते-हँसते, भीतर टूटी है साँसे,चेहरों पर तो रोशनी है, मन में बुझती है आशाएँ।जीवन की डोर मे
Read Moreये धुएँ की चादरें किसने ओढ़ लीं शहर ने?कहीं पेड़ थे, अब वहाँ सिर्फ़ इमारतें हैं। धरती पसीने से तर
Read Moreमैं वह परछाई हूँ, जो छिप न पाई,मन के आँगन में घर कर गई।जहाँ चालों की परतें बिछी थीं,वहाँ मेरा
Read Moreमेरी इच्छाओं का,मेरे नजरिए का,और मेरी बातों का कोई मान नहीं,तो कैसे मान लूं,कि उन बातों में छुपी हैमेरी रज़ा
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