पद्य साहित्य

कविता

महाकुंभ ही मोनालिसा बन आया

महाकुम्भ में मोनालिसा की,महकती-सी मुस्कान,चंदन-रुद्राक्ष-मोती माला बेचती,बड़ी अनोखी शान। खूबसूरत ग्रीवा वाली,लहराते हुए बड़े-बड़े झुमके,हिरनी-सी आंखों वाली,तनिक नहीं शर्माती,बात करते

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