सृष्टि की रचना होती है
नारी उर में, दीप सजाती, नर बिखराता ज्योती है। प्रकृति-पुरुष के सम्मिलन से, सृष्टि की रचना होती है।। भिन्न प्रकृति
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Read Moreधर्मविहीन समाज के निर्माण में सादर सहयोग करें ! आप कैसे कवि हैं ! ‘मुक्तिबोध’ को नहीं समझ पा रहे
Read Moreकभी एहसास को अपने …. कभी एहसास को अपने कभी जज्बात को अपने | लिखा करना मेरे दिल तू कभी
Read Moreमेरी उदासी का सबब मैं रोज देखता हूँ स्कूल के प्रांगण से नाले के पार टैंटों के आस –
Read Moreमेरा, मैं और मेरी में बिखर रहे परिवार अब परिवार में पहले जैसे ना रहा प्यार स्त्रियों से न निभती
Read Moreमैं क्यूँ आऊं तुम्हारी महफ़िल में क्या तुम्हारी अपनी लय है अपने राग हैं मैं क्यूँ झुमूं तुम्हारी बनावटी दुनिया
Read Moreयदि सिखना चाहो जिंदगी से. तो बहुत कुछ सिखाती हैं. कभी राहे. कभी मंज़िल.कभी सपने दिखाती हैं. यदि जिद हो
Read Moreसंयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 21 फ़रवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है । वह भाषा जो हमारे सुख-दुःख ,
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