कविता : जिम्मेदारियों का बोझ
जिम्मेदारियों का बोझ है देवें हौसला तो मर्द बनाना नामुमकिन भी नहीं सजाती है रंग ख्वाबो में,तोड़ देते है दरिंदे
Read Moreजिम्मेदारियों का बोझ है देवें हौसला तो मर्द बनाना नामुमकिन भी नहीं सजाती है रंग ख्वाबो में,तोड़ देते है दरिंदे
Read More(बलिदान दिवस 24. जून पर) रानी तो इतिहास बन गई, हर इक जन की आस बन गई ! जो शोषित
Read Moreमेरी मुस्कान है मेरी बेटी मेरी जान है मेरी बेटी जिसकी महक से महकता है मेरा घर आँगन वो गुलाब
Read Moreउन क्षणों का दर्द कोई नहीं समझ सकता इस संसार में जब तक वो क्षण जिंदगी में ना आएं घर
Read Moreबस एक प्रीत तुम्हारी जिसने मुझे मीरा तुम्हें श्याम बनाया बस एक बात तुम्हारी जिसने तन मन एक संग्राम रचाया
Read Moreमेरे बदन से तू लिपट तो गया है इश्क का फरेबी जाल गूथकर अज़ीज दिलबर की तरह मगर मुझे पता
Read Moreअच्छी-सी किताब की सुगन्ध लुभा लेती है मेरे मन को और सुगन्ध तो नई किताब से भी आती है मगर
Read Moreनन्हीं गौरैया उड़ते-उड़ते चली आई मेरे कमरे में मैंने तुरन्त लपककर बन्द कर दिया खिड़की और दरवाजा और पकड़ने लगा
Read Moreजलकुंभी तालाब में बह आयी हाय रे किसी ने देखा नहीं देखा भी तो निकाला नहीं वह फैलती ही गई
Read Moreख़ुदा मुझे पता है तू सब कुछ कर सकता है फिर भी कुछ तो है जो तू नहीं कर सकता।
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