कविता – बेटी
आसान नहीं यहाँ बेटी बन पाना. खुद की इच्छाये दबाकर दुसरो को खुश रख पाना. जनम से ही भेदभाव के
Read Moreआसान नहीं यहाँ बेटी बन पाना. खुद की इच्छाये दबाकर दुसरो को खुश रख पाना. जनम से ही भेदभाव के
Read Moreसबसे पहले हमें ही जागरुक होना होगा जुगलबंदी के गुलशन में रंगबिरंगे कुसुम खिलने लगे सूर्य की सहस्र रश्मियां पंखुड़ियों
Read Moreलिखती हूं आज फिर नारी के बारे में! इस सोये संसार की आत्मा को जगाना चाहूंगी! आज फिर मैं नारी
Read Moreचलो ना बादलों पर चलें धुँए जैसे उड़ते उड़ते लगाए उनको गले नँगे पाँव से छू ले नीले गगन के
Read Moreकान्हा की मुरली की धुन , उसमें हो गई मगन मैं , कान्हा तुम खोए हो मुरली में, मैं खोई
Read Moreदोस्त इसे इबादत समझता है दोस्त दोस्त नहीं खुदा होता है, महसूस होता है जब वो जुदा होता है, बिना
Read Moreमैं सुंदर शब्दों का राही हूँ मैं कलम का सिपाही हूँ साहित्य से मेरा गहरा नाता डायरी का प्यारा भाई
Read Moreमैं काला कोयला पर्वतों का तू सागर की मोती है, मैं क्रोधानल शंकर की तू ज्वाला जी की ज्योति है।
Read Moreचुनाव के इस रण में चलो अपनी भी चलाते है इस बार किसी और की नहीं अपनी सरकार बनाते है
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