कविता
रिश्तों को जान पहचान की सीमाओं बाँध दिया हंसी में अपने आंसुओं को छुपा लिया जज़्बातों को मौन में छुपाया
Read Moreछोड़ चुका था जिस घर को वर्षौं बाद पुरखों के घर का दर्शन को आया छत्रछाया में जिसके पले बढ़े
Read Moreमधु अमृत सा संचार हो जिसके मन में, जीवन में उसके प्यार की भरमार है, समय की कसौटी पर खरा
Read Moreबड़ी अजीब सी होती जा रही है शहरों की रौशनी उजालों के बावजूद चेहरे पहचानना मुश्किल होता जा रहा है
Read Moreफिरसे बचपने में खो जाते हैं। चलो हम भी बच्चे हो जाते हैं।। मम्मी से माँगें चन्दा खिलौना। पुरानी दरी
Read Moreकभी आना मेरे पास बस निहारना नयनों में भरे प्यार से भींग जाए तन-मन मेरा उस प्यार के एहसास से।
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