खत
खत (1) अब कहाँ कोई लिखता है खत न ही कोई करता है इंतजार न अब अपनों से गिला न
Read Moreधरती अम्बर एक सी लहू भी सबका एक का सा फिर भी इंसान क्यों बंटता चला गया सरहदे बंट गयी
Read Moreसोचना जरूर क्यों आज भी हर जगह भेद -भाव देखने को मिलते है क्यों आज भी हर जगह बटवारा
Read Moreमेरे भी कई जहाज पानी में चलते थे। चांद और सितारे मेरे आंगन में पलते थे।। मिट्टी के खिलौने वो,
Read Moreदर्द तो याद नहीं रहता , पर उसके दिये निशान हमेशा साथ रहे जाते है! बिलकुल बचपन की चोट की
Read Moreआज मेरे अल्फ़ाज़ मुझसे खफा हो गए । खिड़की के रास्ते दफा हो गए । कितने मासूम लगते मुंह के
Read Moreद्वारे को दीप भी देहरी उदास। तेरे आगमन की आंगन को आस। आओगे हे दिल में आस। बांट लोगे दुःख
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