रफू
अचानक असमय उलझकर यहाँ- वहाँ से- फट जाते हैं संबंध कारण उनका गलना नहीं था मारी थी अंहकार ने ठोकर
Read Moreन अभिमान कर, वर्तमान का, पद का, प्रतिष्ठा का, और इसकी ऊंचाइयों का ! होगा कोई और, कल इसका वारिस
Read Moreशिक्षित समाज, ये सभ्य समाज,,, सब्जी-भाजी की तरह, लगती है जहाँ, आज भी… जिस्मों की मंडी ॥ नज़रें करें, तोल-मोल
Read Moreशीर्षक – “पन्ने मेरी पुस्तक के” सहेज कर रखी है कुछ यादें मैंने अपने पुस्तक के पन्नों पर वो सुखात्मक-
Read Moreसौ नं. की सेवा —————— बढ़ते अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने शुरू की सौ नं. की सेवा
Read Moreहिन्दी दिन-ब- दिन बढ़ रही चिंता की कोई बात नहीं कोटि कोटि जनों की भाषा कोटि कोटि दिलों की भाषा
Read Moreहिंदी भाषा भारतवर्ष में ,सदा पाई है मात्रु सम मान यही हमारी अस्मिता है, और यही है हमारी पहचान हिन्दी
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