ग़ज़ल
कभी सपनों से बाहर भी आया करोहर दिन-रात मुझको सताया करो साथ हमने बिताये सुनहरे जो पलउन पलों को कभी
Read Moreतुम्हारी बेरुखी फिर मुझको न रुसवा कर देफिर न एक बार मुझे ख़ुद में अकेला कर दे मैं जानता हूं
Read Moreतेरी मेहरबानी का किस्सा सबको सुनाया।अंधा समझ हाथ पकड़ तूने रास्ता दिखाया। अब तो तेरी शिकायत करें भी तो किससे।सबके
Read Moreजो गीली लकड़ियों को फूंक कर चूल्हा जलाती थींजो सिल पर सुर्ख़ मिर्चें पीस कर सालन पकाती थीं, सुबह से
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