हे कृष्ण एक बार फिर धरा पर आ जाओ
हे कृष्ण एक बार फिर धरा पर आ जाओनफ़रत की इस दुनिया में तुम,फिर से सबके दिल में एक बारगोपियों
Read Moreहे कृष्ण एक बार फिर धरा पर आ जाओनफ़रत की इस दुनिया में तुम,फिर से सबके दिल में एक बारगोपियों
Read Moreसांझ घिरने लगी, दीप जलने लगे बस यही कामना आप आ जाइए। और रातें किसी भांति कट भी गयीं किन्तु
Read Moreसाहस को यदि पंख लगाओ,तो मिट जाये उलझन। असफलता मिट जाये सारी,भरे हर्ष से जीवन।। बने हौसला गति का वाहक,
Read Moreपरदेसी मुसाफिर तेरा कहां ठिकाना परदेस हुआ अपना देस हुआ बेगाना बिन तेरे सूना है आंगन सूना है गलियारा रंग
Read Moreविश्व कप क्रिकेट में, भारत ऊपर आन। चारों मेच जीत लिये,कहत हैं कवि मसान।। पहला मेच आस्ट्रेलिया,कंगारुन की हार। छै
Read Moreघात करो प्रतिघात करो तुमखुलकर शह और मात करोमानवता का खुला प्रश्न बसअस्पताल पर हमला क्यों? हार रहे हैं जूझ
Read Moreजितने साँचे उतनी प्रतिमाशेष न रहती एक। कुंभकार है अद्भुत सृष्टासाँचे गढ़े नवीन।माटी भर -भर बना रहा हैलघु,पतली या पीन।।
Read More-साठ का आंकड़ा, पार क्या किया लगता है जैसे, नये पंख लग गये नयी नयी विधाओं,से हुआ सामना खुशियों से
Read Moreन्यायपीठ को आधा सच ही दिखता क्यों है? एक जगह की हिंसा पर हो आग-बबूला, कई जगह की मार-काट पर चुप रहते हो। कितनी ही घटनाओं को अनदेखा करके, किसी एक घटना पर कुछ ज़्यादा कहते हो। अगर न्याय के आसन पर हो माननीय तो, कुछ लोगों से भेदभाव का रिश्ता क्यों है? कहीं चुनावों में खुलकर हत्याएँ होती, बड़ी अदालत को कुछ नहीं दिखाई देता। और न ही न्यायालय के बहरे कानों को, बम की आवाज़ों का शोर सुनाई देता। किंतु अचानक सभी इंद्रियाँ जग जाने से, सब कुछ दिखने लगता, सुनने लगता क्यों है? यूँ तो सालों-साल नहीं मिलती तारीख़ें, किंतु किसी के लिए रात में खुले अदालत। इंतज़ार में उम्र गुज़र जाती लोगों की, धनवानों को क्षण-भर में मिल जाती राहत। दुष्टों को परवाह नहीं है क़ानूनों की, आम आदमी ही चक्की में पिसता क्यों है? माननीय ही माननीय का चयन कर रहे,
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