गीत/नवगीत

गीत/नवगीत

गीत 

न्यायपीठ को आधा सच ही दिखता क्यों है?  एक जगह की हिंसा पर हो आग-बबूला, कई जगह की मार-काट पर चुप रहते हो। कितनी ही घटनाओं को अनदेखा करके, किसी एक घटना पर कुछ ज़्यादा कहते हो। अगर न्याय के आसन पर हो माननीय तो, कुछ लोगों से भेदभाव का रिश्ता क्यों है?  कहीं चुनावों में खुलकर हत्याएँ होती, बड़ी अदालत को कुछ नहीं दिखाई देता। और न ही न्यायालय के बहरे कानों को, बम की आवाज़ों का शोर सुनाई देता।  किंतु अचानक सभी इंद्रियाँ जग जाने से,  सब कुछ दिखने लगता, सुनने लगता क्यों है?  यूँ तो सालों-साल नहीं मिलती तारीख़ें, किंतु किसी के लिए रात में खुले अदालत। इंतज़ार में उम्र गुज़र जाती लोगों की, धनवानों को क्षण-भर में मिल जाती राहत। दुष्टों को परवाह नहीं है क़ानूनों की, आम आदमी ही चक्की में पिसता क्यों है?  माननीय ही माननीय का चयन कर रहे,

Read More