ग़ज़ल
सोच के साथ जब अमल आया।खुद ब खुद रास्ता निकल आया। सूर्य उल्फ़त काजबनिकल आया।मोम सा आदमी पिघल आया। काम
Read Moreजहाँ हमारी सीमाओं पर तुम जैसे हों प्रहरी,नहीं किसी में है हिम्मत जो लाँघ सके है देहरी। जल थल नभ
Read Moreचलते हैं हम हँसते-हँसते, भीतर टूटी है साँसे,चेहरों पर तो रोशनी है, मन में बुझती है आशाएँ।जीवन की डोर मे
Read Moreये धुएँ की चादरें किसने ओढ़ लीं शहर ने?कहीं पेड़ थे, अब वहाँ सिर्फ़ इमारतें हैं। धरती पसीने से तर
Read Moreमैं वह परछाई हूँ, जो छिप न पाई,मन के आँगन में घर कर गई।जहाँ चालों की परतें बिछी थीं,वहाँ मेरा
Read Moreमेरी इच्छाओं का,मेरे नजरिए का,और मेरी बातों का कोई मान नहीं,तो कैसे मान लूं,कि उन बातों में छुपी हैमेरी रज़ा
Read Moreवे जब चलीं तो हाथ में कलम थी,पर राह में कांटे, पत्थर, हर कदम थी।सच की तलाश में निकलीं जो
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