हास्य व्यंग्य

जन विमुख जनतन्त्र

छब्बीस जनवरी को फिर से मनाया जाएगा गणतन्त्र दिवस। ठीक वैसे ही जैसे पाँच महीने पहले मनाया गया था स्वाधीनता दिवस। ये दोनों हमारे जन्म से बहुत पहले से मनाए जा रहे हैं। शायद आप भी न जन्में हों या नन्हें-मुन्ने रहे हों। सच की दस्तक भी नहीं जन्मा था। यकीनन नहीं जन्मा था। हमने […]

हास्य व्यंग्य

गाली : एक सांस्कृतिक संपत्ति ( व्यंग्य)

गालियाँ हमारी सांस्कृतिक विरासत है। यह ऐसी देव विद्या है जिसे जिज्ञासु, बिना किसी गुरुकुल, विद्यालय-विश्वविद्यालय में गए आत्म-प्रेरणा से सीख लेता है, और लेनेवाला ‘खाता’है। हमारे देश में तो कहावत भी है-‘तोरी गारी, मोरे कान की बाली।’ गाली हमेशा दी जाती है, जिसे बोलचाल की भाषा में “बकना’ कहते हैं। इसे देनेवाला देता है। […]

हास्य व्यंग्य

भारत महोत्सव और भेलपुरी!

उस दिन लखनऊ में एलडीए के गोल मार्केट से पत्नी को खरीददारी कराकर वापस आ रहा था। मैंने लाल रंग का एक काफी पुराना लोअर जिसपर लिखावट वाला प्रिंट था, के साथ एक पुरानी सफेद रंग की टीशर्ट के ऊपर पूरी बाह का स्वेटर पहने हुए था। यह स्वेटर भी तेइस साल पुराना है, जिसे […]

हास्य व्यंग्य

चार लोग क्या कहेंगे!

हमारे समाज में चार की संख्या का विशेष महत्त्व है।चार धाम, चार वेद,चार वर्ण, लोकतंत्र के चार चरण (किन्तु गधा,घोड़ा न समझें) और सबसे अधिक महत्वपूर्ण यदि कोई या कुछ है तो वह है: “चार लोग” !इन चार लोगों ने ही धरती उठा रखी है।इनका बहुत ही अधिक मान – सम्मान है।ये चार ही तो […]

हास्य व्यंग्य

मफलर लूट लिया पैसे वाला शराबी

रात के दस बजे थे। मैं रात्रि भ्रमण पर था। निश्चित था। कोई डर नहीं थी। क्योंकि क्षेत्र तो अपना ही था। ऐसे भी दिल्ली के मुख्य क्षेत्रों में सुरक्षा तो सक्रिय ही रहती है। मुझे यह उम्मीद तक नहीं थी कि मैं एक फ्रेंडली लूट का शिकार हो जाउंगा। पर घटनाएं तो अचानक ही […]

हास्य व्यंग्य

चोर – चोर मौसेरे भाई

जहाँ तक मेरी जानकारी की दूरदृष्टि जाती है,चोरी एक सदाबहार कला के रूप में विख्यात रही है। चोरियों के भी तो अनेक प्रकार हैं। केवल धन की चोरी ही चोरी नहीं होती। और भी चोरियों के विविध रूप हैं।धन की चोरी से पहले भी अनेक प्रकार की चोरियाँ होना एक साधारण – सी बात मानी […]

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व्यंग्य – दुम हिलाइए, पुरस्कार पाइए

लंबे समय से कागज काला करता आ रहा हूं।लेकिन एक भी वैसा पुरस्कार,जिसमें सम्मानजनक राशि,प्रशस्ति पत्र व आकर्षक मोमेंटो शामिल हो, ऐसा अवसरआज तक नहीं मिला कंबख्त।छोटे-मोटे पुरस्कार तो अक्सर स्थानीय स्तर पर मिल ही जाते हैं जिससे क्षेत्र में जहां लंबे समय से सांप की तरह कुंडली मारकर बैठे आए हो वहां इस तरह […]

हास्य व्यंग्य

दो कानों की भी सुन लें

आपके साथ हर समय रहने वाले ,सबकी अच्छी – बुरी सुनने वाले ;हम आपके ही दो कान हैं। आप ये मत समझें कि हम आपके मेहमान हैं।लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं कि हमारा नहीं कोई मान – सम्मान है!हमारी भी अपनी एक पहचान है।हम आपके दिमाग़ के पड़ौसी भी हैं ,इसलिए हमें भी तो […]

हास्य व्यंग्य

ऊँची दुकान-फीका पकवान

दुकान और पकवान दोनों मानव से जुड़ी अति प्राचीन काल से सतत चलने वाली आवश्यकताएँ हैं। दुकान पर माँग – पूर्ति द्वारा कई तरह के पकवान खरीदे जा सकते हैं। पकवान द्वारा उदरभरण के साथ-साथ रसना भी तृप्ति के कई सोपान तय करती है। प्रायः यही धारणा बलवती पायी जाती है कि ऊँची दुकान हो […]

हास्य व्यंग्य

खट्टा-मीठा : ठग को महाठग

“सेर को सवा सेर” यह लोकोक्ति अब पुरानी हो गयी है। अब एक नयी कहावत बनी है- “ठग को महाठग”। जो कोई अपनी बातों के जाल में फँसाकर भोले-भाले लोगों का माल हड़प लेता है, उसे ठग कहते हैं, परन्तु जो ठगों को भी ठग लेता है, उसे महाठग कहा जाता है। जी हाँ, आप […]