तकदीर को तू अपनी बदलने का हुनर सीख हालात की गर्मी से पिघलने का हुनर सीख रुकने का तसव्वुर भी ना करना तू मुसाफिर मंजिल को जो पाना है तो चलने का हुनर सीख परवाना तो मर जाता है बे मौत ही जलकर आ शम्मा की मानिंद तू जलने का हुनर सीख सीखा है अगर […]
Author: नमिता राकेश
ग़ज़ल
अंजाम उसके हाथ है आगाज़ करके देख, तू कांपते लबों से ही आवाज़ करके देख। माना कि पर कटे हैं इरादे बुलन्द रख, मंज़िल तुझे मिलेगी तू परवाज़ करके देख। वो कितना राज़दार है इसका हो इंकशाफ, इक बार उसको ख़्वाब में हमराज़ करके देख। तादेर दोस्तों से नहीं दुश्मनी भली, तू अपने दोस्तों का […]
ग़ज़ल
झूठ भी सच पर भारी है, यह कैसी लाचारी है। सूरज को ललकारे है, जुगनू की मक्कारी है। उसकी बातों में ना आ, वो तलवार दोधारी है। इक पल उसको सोचा था, अब तक एक ख़ुमारी है। प्यार उसी से है लेकिन कहने में दुश्वारी है। धीरे धीरे बोल ज़रा, माँ की पहरेदारी है। देख […]
गूंज शब्दों की
गूंज शब्दों की या अनकही बातों की जब तक दिल तक ना पँहुचे तब तक कुछ कहना या चुप रहना अर्थहीन हो जाता है इसलिए दिल की बात दिल से कहो दिल से सुनो और जब धड़कनें कानों तक पँहुचने लगें तब बस मुस्कुरा देना मैं समझ जाऊंगी — नमिता राकेश
तुम्हें जीतना
तुम्हें जीतना बहुत आसान था पर तुम्हें हारते हुए नहीं देख सकती थी इसलिए चाहते हुए भी कोशिश नही की और खुद हार गई क्योकि तुम मुझे हारते हुए देखना चाहते थे और मैं तुम्हारी खुशी बस यही फरक है तुम में और मुझमें तुम्हारी सोच खुद पर केंद्रित रही और मेरी तुम पर लेकिन […]
हे कविता !
अब तुम ही बताओ कैसे करूँ परिभाषित तुमको ! तुम कभी लय बध्द हो एक नृत्यांगना की तरह तो कभी मुक्त छंद सी चंचल नदी की मानिंद तो कभी ग़ज़ल की बहरों में बंधी अरकान और मीटर के तिलस्म में फंसी कोई स्त्री जो लुभावने प्रोलोभनों की ओर हो जाती है आसक्त कभी हाइकु सा […]
ग़ज़ल
भीड़ के हर सू रेले हैं फिर भी लोग अकेले हैं तन्हाई से डरना क्या तन्हाई में मेले हैं इंसा ने सुख की खातिर कितने ही दुख झेले हैं जंगल से ज़्यादा वहशी बस्ती बस्ती फैले हैं मिट्टी में मिल जाएंगे सब मिट्टी के ढेले हैं लाख पुराना दिल है पर ग़म तो नए नवेले […]
बस, अब और नहीं.
तुम्हें जीतना बहुत आसान था पर तुम्हें हारते हुए नहीं देख सकती थी इसलिए चाहते हुए भी कोशिश नही की और खुद हार गई क्योकि तुम मुझे हारते हुए देखना चाहते थे और मैं तुम्हारी खुशी बस यही फरक है तुम में और मुझमें तुम्हारी सोच खुद पर केंद्रित रही और मेरी तुम पर लेकिन […]
किसान
लिख लो तुम भी हम पर या कहूँ हमारी बेबसी पर चंद पंक्तिया बटोर लो वाह वाही पर बताओ क्या इससे हमारी भूख मिटा सकोगे ? हमारी लाचारी को कविता की प्लेट में सजा कर चंद मुहावरों और छद्म अलंकारों का वर्क लगा कर मिठाई की तरह कब तक बेचते रहोगे ? हम किसान तुम्हारी […]
गजल
तेरी आंखों में प्यार देखा है बेहद और बेशुमार देखा है लाड़ पाया है मैंने अम्मा का मैंने भी मां का प्यार देखा है प्यार जिसने किया ज़माने में उसी को होशियार देखा है जिसने खिदमत करी बुजुर्गों की उसकी कश्ती को पार देखा है मुद्दतों बाद भी है दिल में वो बस उसे एक […]