लघुकथा : भूख और भीख
खिड़की की सलाखों से देखा, ज़मीन पर मैले-कुचैले चिथड़ों में लिपटा वह पिंजर, निहायत ही कमज़ोर शरीर कमज़ोर, आँखें धँसी
Read Moreखिड़की की सलाखों से देखा, ज़मीन पर मैले-कुचैले चिथड़ों में लिपटा वह पिंजर, निहायत ही कमज़ोर शरीर कमज़ोर, आँखें धँसी
Read Moreसंयोग (लघुकथा) हर बुधवार की तरह इस बुधवार भी मैं English Conversation (Australian Accent)पढ़ने के लिए स्कूल गई थी. संयोग
Read Moreहितेश इंजीनियर बनकर बहुत खुश था. सबकी बधाइयों और शुभकामनाओं ने उसकी खुशी में चार चांद लगा दिए थे. स्मृतियों
Read Moreहेलो माँ ! कैसी हो ? ठीक हूं बेटा! तुम कैसी हो? बस!! अच्छी हूं माँ क्यों बेटा! आज आवाज़
Read Moreअवकाश प्राप्त प्रोफेसर हूँ लेकिन दीवाल घड़ी पर नज़र बर बस चली ही जाती है सुबह होते ही लगता कालेज
Read Moreउसने कहा “तुम बहुत सुन्दर हो” झूठी तारीफ थी लेकिन उसे सच्ची लगी। इस तरह वह हर बार उसकी तारीफ करता
Read Moreसाधना के कमरे से शास्त्रीय संगीत की स्वर लहरियां वातावरण को आनन्दमय बना रही थीं। मैं उसमें डूब कर मानों
Read Moreपत्र साल दो हजार बीस के नाम… समय- मध्य/ नवम्बर /2020 आदरणीया साल 2020 ,
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