कविता : देह
देह उसकी देह आज चुपचाप पड़ी थी म्रत बिना कम्पन के मार कर अपने मन को जब मुर्दा सी पड़ी
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Read Moreबहर- 1222 1222 1222 1222 कभी मेरे लिये दिलवर मेरा ऑगन सजायेगा। भुलाकर वो खता सारी मुझे अपना बनायेगा। जिन्हे
Read Moreकितनी पिसती है हर रोज चकला ,बेलन के मध्य स्त्री हाँ स्त्री रोटी सी स्त्री कभी कभी यूँ ही सोचकर
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