प्रभु से अरदास
प्रभु मेरी तुमसें है अरदास साल तो यह जैसे तैसे बीत रहा मास दिसंबर साल अंत का भी अा गया
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Read Moreसच ही तो है कि हम सब माटी के पुतले भर हैं, हमारी औकात मिट्टी के बराबर भी नहीं है।
Read More“जब शरीर को यहीं जला दी जाती है और आत्मा अजर-अमर है, तो नरक में गरम तेल की कड़ाही में
Read Moreसोच हमारी इतनी संकीर्ण और सीमित हो चुकी है कि अगर किसी को ‘आई लव यू’ कहते हैं, तो हम
Read Moreएक चुटकी सिंदूर का स्थान जब से ‘रेड लाइनर’ ने ली है, तब से रमेश बाबू सोच रहे, उनका क्या
Read Moreखाली हाथ आये थे, खाली हाथ जाना है, इस भाग दौड़ के जीवन में थोड़ा सुख पाना है, .जीवन क्या
Read Moreमेरी नजर में “मिस्टर बिहार” मनिहारी ही नहीं, मेरे दिल में बसते हैं…. वाकई, बेहद ‘क्यूटी’ लुक है…. स्मार्ट टीचर…..
Read Moreआज एन्टी-प्रेमचंद जैसे कथाकार की जरूरत है, जो ‘पूस का दिन’ लिखे ! पूस के इन दिनों जो कड़ाके की
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