ग़ज़ल
ख़ुद ही रोयें, ख़ुद मुस्काने लगते हैं इश्क़ में डूबे लोग दिवाने लगते हैं चार ही लोगों का क़िस्सा है
Read Moreदीवाली उसे भी मनानी है, दीपक भी उसे जलाने है। पिछ्ले साल न बिके थे दिये, इस साल भी दुकान
Read Moreउसे इस बात का पूर्वानुमान था कि उसने जिस साहस ,हिम्मत और करेज के साथ उस आतंकवाद के खिलाफ अभियान
Read Moreआओ मिलकर दिया जलायें खुशियों का त्योहार मनाएं, छोटा बड़ा यहाँ न कोई आओ सबमिल भेद मिटाएँ। रोशन हो अपना
Read Moreआज मैं बड़े असमंजस में हूँ , सोचती हूँ क्या कहूँ, यही सोच रही हूँ कि हम अभावों को कैसे समझ
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