कविता

बेजोड़ बांसुरी

 

‘बेजोड़ बांसुरी’ की धुन प्यारी,जन जन के मन को कर रही मोहित,
हर कविता में बेजोड़ तथ्य है, हर कविता करती तन मन शोभित,

निर्मल लेखनी से निकला काव्य रस ,मन को देता है पूर्ण संतोष ,
भर दी है जैसे गागर में सागर , आनंद मे  खो गए  सबके होश,

शिवम ना होना कभी निराश, मिट जाएगी जीवन की हर तन्हाई,
सर पर जिसके हाथ हो माँ का, उसने सुख संतोष की दौलत पाई,

नीरू मन ही मन मौन रहकर दिल से पुकारती अपने प्रियतम को,
अगर ज़माने का भय न हो तो ,हर पल निहारती अपने साजन को ,

श्री हरी ओम ताकता जिसकी राहें,रातो में छम छम करके आती है,
रात रात भर उन्हें जगा कर, और नींद चुरा कर, दीवाना कर जाती है,

रामेश्वर की कलम यूं चलती , ज्यों रण में राजपूत की चले तलवार,
रणवीर बाँकुरे कफ़न बाँध कर, वतन पर मर मिटने को जैसे तैयार,

यदुवंशी की हर बात निराली, जैसे बिन मंज़िल हर राह अधूरी
जीवन सपने ना रह जाये अधूरे, हर सपने का साकार ज़रूरी,

अशोक नहीं तुम अनजाने अब, साहित्य जगत में छू लो आकाश,
उम्मीदों का सूरज उपज रहा  है,हर और  फैल रहा काव्य प्रकाश,

काव्य जगत के नव रत्न हो  , कविता की बगिया तुम माली,
यही दुआ करते हैं सब दिल से, व्यंग बाण कभी जाये ना खाली,

अजिंक्य सहाय आपकी कविता देखो असहायों को राह दखाती,
चाँद कभी बदन न छूने दे अपना, पर रात चांदनी सब को भाती,

साहित्य जगत में नाम हो सबका,कवि मित्रों की हो जय जय कार ,
प्रकृति से लेखन प्रतिभा उपहार मिली  है,करदो इससे जग का उद्धार

–जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845