कहानी

कहानी : एक किसान की आत्महत्या – भाग 1

” अरे ओ … तरवा की अम्मा..” करमू ने घर के बरामदे में कदम रखते ही जोर से आवाज लगाई ।
” तरवा की अम्माsssssss…. तरवा ” कोई आवाज न सुन करमू ने फिर घर के दरवाजे को खोलते हुए आवाज लगाई, पर घर के अंदर कोई न था ।
” कंहा चली गई दोनों ?? ” अंदर तारा जो कि उसकी बेटी थी और उसकी माँ शगुनि जो कि उसकी पत्नी थी उन्हें घर में न पाकर बड़बड़ाया और घर के बाहर बरमदे में आ गया । इतने में शगुनि पानी का घड़ा लाती हुई बरामदे में दाखिल हुई ।
” अरी , कहाँ चली गई थी घर छोड़ के? और तरवा कंहा है ?उसे देख करमू थोड़े गर्म लहजे में बोला।
” और कंहा जाती ! सरकारी नल से पानी लेने गई थी , काहे इतना आफ़त मचाये हो? तरवा खेत से लहसुन लेने गई है ” शगुनि ने जबाब दिया ।
” आफ़त!!,अरी तू सुनेगी तो नाचने लगेगी खुसी से , ऐसी खबर है ” करमु ने थोडा चहकते हुए अंदाज में शगुनि को छेड़ते हुए कहा ।
” अब नाचने की उम्र नहीं है मेरी, और अइसन का खबर ले आये? कौनो खजाना हाथ लग गया का ? ” शगुनि ने पानी का घड़ा एक तरफ रखते हुए पूछा ।
“सब बताऊंगा … पहले एक गिलास पानी तो पिला ‘ करमु पास पड़े लकड़ी के पटरे पर बैठते हुए बोला। शगुनि ने एक स्टील के गिलास में पानी भरा और करमु को पकड़ा दिया
“अब बताओ क्या बात है ? ” शगुनि ने करमु के पास जमीन पर बैठते हुए और हाथ का पंखा झलते हुए पूछा
” बताता हूँ , पहले ले मिठाई खा ” करमु ने जेब से कागज़ में लिपटे लड्डू निकालते हुए कहा। दोनों ने एक एक लड्डू खाया और एक लड्डू तारा के लिए रख दिया , फिर पानी पीने के बाद करमु ने बताना शुरू किया ।
“आज खेतो से घर आते समय गाँव के ठाकुर साहब मिले थे , उन्होंने मुझ से खुद कहा की मैं उनकी 20 बीघा जमीन बटाई पर जोत लूँ , तू तो जानती है की बाकी जमीन तो उन्होंने दूसरे गाँव के किसी ठेकेदार को दे दी है पर वे यह 20 बीघा जमीन पथरीली होने के कारण ठेकेदार ने उसमें फसल बोने के लिए मना कर दिया है ” करमू इतना कह थोडा रुक गया
” हाय दईया ! वह तो बहुत बंजर जमीन है , पत्थर ही पत्थर पड़े हैं वंहा … उसमे फसल कंहा होगी” शगुनि ने आस्चर्य से कहा
” अरे पगली, पथरीली है तो क्या हुआ हम साफ़ कर देंगे उसे ” करमू ने जोश से कहा
” उ ज़मीन साफ़ होना बहुत मुश्किल है , कैसे साफ़ करेंगे हम उसे ?” शगुनी ने फिर प्रश्न किया ।
” हाँ , मुश्किल तो है पर हम मेहनत करें तो साफ़ होना कौनो मुश्किल नहीं है , और फिर अगले बरस शादी भी तो करनी हैं न तरवा की … लड़का तो हमने देख ही रखा है । तरवा की शादी बड़ी धूम धाम से करेंगे अगर फसल अच्छी हो गई .. बीस बीघा ठाकुर का और चार बीघा अपना , कुल मिला के चौबीस बीघा जमीन का फसल होगी ” इतना कह करमू फिर शगुनी की तरफ देखने लगा ।

शगुनी ने थोडा संकोच करते हुए कहा ” कह तो आप ठीक रहे हो पर फसल कौन खरीदेगा ?”
” धत्त .. कर दी न मूरख वाली बात, अरे सरकारी गोदाम में बेचेंगे न , वे लोग अच्छी रकम देते हैं” करमू ने शगुनी को झिड़कते हुए कहा
करमू ने आगे जारी रखा ‘ तू चिंता मत कर सब ठीक हो जायेगा , एक ही लड़की है हमारी उसकी शादी बहुत धूम धाम से करेंगे की पूरी बिरादरी देखेगी ”
” पर ठाकुर बहुत ख़राब आदमी है हमेशा गांव की औरतो पर बुरी नजर से देखता रहता है और लालची भी एक नंबर का है ” अब शगुनी ने अपनी मूल चिंता जताई
” अरे वो हम बचपन से जानते हैं , हमारी हम उम्र का है वह .. हमारे बाप दादा उसी के खेतो और हवेली में मजदूरी करते थे ….. पर हमे उससे क्या लेना देना ? हम तो फसल कटने के बाद उसकी बटाई 80 हजार दे देंगे बस और बाकी अपना मुनाफा रख लेंगे ” करमू ने समझाते हुए कहा ।
” हाँ, अम्मा बाबा ठीक कह रहें हैं हम लोग मेहनत करेंगे और देखना अच्छी फसल पैदा करेंगे ” तभी अंदर आती हुई तारा ने कहा
“अच्छा!! तो तू हमारी बाते सुन रही थी छुप छुप के ..” शगुनी ने तारा की बात सुन कर कहा
” हाँ, बाबा बिलकुल ठीक कह रहे हैं … बाबा लाओ मेरा लड्डू दो” तारा ने करमू को छेड़ते हुए कहा ।
” अम्मा , जैसी शांति की शादी में जेवर बनवाये थे उसके बाबा ने मैं उससे अच्छा हार लुंगी हाँ ” तारा ने मुंह बिचकाते हुए कहा
” अरे मेरी बिटिया, उससे भी बढियां जेवर बनवाऊंगा अपनी बिट्टो के लिए ‘ करमू ने प्यार और गर्व मिश्रित आवाज में कहा

इस तरह तीनो लोग भविष्य की योजनाये बनाते बनाते कब खाना खाया और कब सो गए उन्हें पता ही नहीं चला। सुबह करमू नहा धो के सीधा ठाकुर साहब के बंगले पर पहुंचा । वंहा ठाकुर साहब पहले से ही अपने बड़े से हाल में दो तीन लोगों के साथ बैठे थे , चौकीदार ने ठाकुर साहब को खबर दी कि करमू मिलना चाहता है। ठाकुर साहब की इजाजत लेके चौकीदार ने करमू को बंगले में भेज दिया। अंदर पहुँच के सबसे पहले करमू ने अपनी चप्पले उतार दीं और उसके बाद हाल में प्रवेश किया , अंदर पहुँच के जैसे ही करमू की नजर ठाकुर साहब पर पड़ी उसने वंही से दोनों हाथ जोड़ लिए और पास आके सीधा ठाकुर साहब के कदमों को छूता  हुआ बोला- ” पाय लागू ठाकुर महाराज ‘
” हम्म, और बता ठीक तो है न सब ?’ ठाकुर ने बिना करमू की तरफ देखे कहा
” जी , अन्नदाता कृपा है आपकी’ करमू ठाकुर के पैरो से खड़ा होता हुआ बोला
” तो तूने क्या सोचा? खेत जोतेगा? तू तो जानता ही है करमू की हमारा एक ही बेटा है वह भी शहर जा के बस गया है । अब उम्र हो गई है मेरी भी भागदौड़ होती नहीं है खेतो की इसलिए बटाई मेरे दे दिए सारे खेत वर्ना तेरे बाप दादा तो मजदूरी करते करते मर गए हमारे खेतों में ” ठाकुर ने ताव से कहा
” जी, अन्नदाता जानता हूँ यह तो आपकी कृपा है जो आपने मुझे इस लायक समझा ‘ करमू ने हाथ जोड़े और सर झुकाये ही कहा
‘ तो ठीक है, ये हमारे वकील साहब है तुझे बाकी की सारी बाते समझा देंगे ‘ ठाकुर साहब ने पास बैठे व्यक्ति की तरफ इशारा किया ।

वकील करमू को अलग कमरे में ले गया और कुछ समझाने लगा , सारी बात ख़त्म करने के बाद वकील ने एक एग्रीमेंट पेपर पर करमू का अंगूठा ले लिया ।एक कॉपी करमू को देने के बाद एक कॉपी अपने पास रख लिया।करमू अपनी कॉपी लेके और वकील को नमस्ते कर बाहर निकल आया और अपनी साईकिल उठा के तेजी से घर की तरफ चल दिया ।घर पहुँच के उसने सारी बात तारा और शगुनि को बताई और कागज़ दिखाया , तारा जो आठवीं तक पढ़ी हुई थी उसने कागज में रकम देखि तो संतुष्ट हुई की 80 हजार ही लिखी हुई थी , पर यह क्या रकम तो कर्जे के रूप में लिखी हुई थी ।तारा ने तुरंत करमू को बताया की
ठाकुर ने बटाई की रकम कर्जे के रूप में लिखी हुई है , चाहे फसल हो या न हो उससे उसको मतलब नहीं बल्कि उसने 80 हजार कर्जा दिया हुआ है एक साल के लिए और एक साल बाद 10% के हिसाब से ब्याज हर महीने लगेगा अगर कर्ज नहीं चुकाया तो ।
यह सुन करमू के माथे पर चिंता की लकीरे उभर आई , शगुनि ने करमू को चिंतित देख कहा-
“मैं तो पहले ही कहती थी की ठाकुर के चक्कर में मत फंसो वह बहुत कमीना इंसान है , अब देखो कर दी न चालाकी”
करमू ने ठंढी साँस छोड़ी और आसमान की तरफ देख के बोला –
‘ जानता हूँ तरवा की अम्मा.. पर मुझे भगवान् पर पूरा भरोसा है .. तू देखना अच्छी फसल होगी अपनी ‘
‘कल से ही ठाकुर के खेतो पर काम करना शुरू करना पड़ेगा ‘ करमू ने कहना जारी रखा

इतना कह के करमू अपनी पत्नी और बेटी के साथ कल की योजना बनाने लगा, इतने में करमू का एक पडोसी भी करमू के घर आ गयी। उसे पता चल गया था कि करमू ने ठाकुर की जमीन बटाई पर ली है ।उसने करमू का सहस बढ़ाया और यथासम्भव मदद का वादा किया क्यों कि वह जानता था कि करमू उसका अच्छा पडोसी और एक ईमानदार व्यक्ति है ।

अगली सुबह सूरज निकलने से पहले ही करमू और उसकी पत्नी शगुनी दोनों टोकरा और फावड़ा लेके ठाकुर के खेत पर पहुँच चुके थे , उन्होंने खेत में से फावड़े और खुरपी की सहायता से टोकरा भर भर के छोटे बड़े पत्थर निकालने शुरु कर दिए। दोपहर में तारा भी खाना बना के अपने माता पिता को पहुंचा देती और उसके बाद शाम तक वह भी बंजर जमीन से पत्थर निकलवाती। कड़ी धूप हो या आंधी करमू और उसका परिवार पत्थर साफ करने का काम करता रहता  ।कभी कभी तो ज्यादा काम करने से वे बीमार भी पड़ जाते पर एक दूसरे का सहारा लेके काम जारी रखते ।
एक महीने की कड़ी मेहनत से आखिर वह बंजर भूमि जिसे ठाकुर ‘खेत’ कहता था के पत्थर साफ़ हो चुके थे और वह जमीन अब जोतने लायक हो गई थी ।

‘ देखा तूने , आखिर हमारी मेहनत रंग लाई और यह जमीन हल चलाने लायक हो ही गई ‘ एक शाम करमू ने खेत की मेड़ पर खड़े होके खेतो की तरफ देखते हुए शगुनी से कहा ।
‘ हाँ जी , बिलकुल सही कहा आपने … कितनी मेहनत की है आपने इसके लिए ‘ शगुनी ने जबाब दिया
‘ मैंने नहीं पगली , हमने … हम तीनो ने मेहनत की है ‘ करमू ने मुस्कुराते हुए कहा
बदले में शगुनी भी मुस्कुरा दी ।
दोनों घर की तरफ चल दिए , आज दोनों बहुत खुश थे ।

दो दिन बाद करमू अपने हल और बैलो के साथ खेत जोतने को तैयार था, करमू फिर उसी लगन और मेहनत से खेत जोतने में जुटा रहता न। बीच बीच में एक दो दिन बारिश होने के कारण खेत में हल चलाना थोडा आसान हो गया था । शगुनी और तारा भी फावड़ा लेके खेतो में लगी रहती करमू की सहायता के लिए । गाँव का जो भी उन्हें देखता उनकी मेहनत और जज्बे की प्रसंशा किये बिना नहीं रहता ।
एक दिन करमू , शगुनी और तारा खेतो में काम कर ही रहे थे की ठाकुर अपने दो कारिंदो के साथ आ धमका । उसे देखते ही करमू हाथ जोड़ के खड़ा हो गया , शगुनी ने झट घूँघट से अपना चेहरा ढँक लिया पर तारा अपना काम करती रही ।
‘ अरे वाह!! करमू तूने तो बहुत कमाल कर दिया रे, एक दम चकाचक … ‘ ठाकुर ने खेत के की तरफ देखते हुए आश्चार्य से कहा
‘ हमें पता था की यह काम सिर्फ तू ही कर सकता है पूरे गाँव में इसी लिए हमने तुझे ही खेत दिया ‘ ठाकुर ने बात ख़त्म की

‘ यह तो आपका और ऊपर वाले का आशीर्वाद है ठाकुर महाराज जो आपने मुझे इस लायक समझा’ – करमू ने हाथ जोड़े जोड़े कहा
‘ तू वाकई बहुत मेहनती है रे, उ लड़की कौन है ‘ अब ठाकुर की नजर तारा पर पड़ी तो उसने पूछा
‘ जी ठाकुर महाराज , तारा है मेरी बेटी…. एक ही बेटी है मेरी… ‘ करमू ने जबाब दिया
‘ तरवा यंहा आ … ठाकुर महाराज के पैर छू’ करमू ने तारा को आवाज लगाई
तारा अनमने मन से ठाकुर के पास आई और झुक के पैर छूना चाहा ,पर तब तक ठाकुर की नजर तारा के बदन और खूबसूरत चेहरे पर पड़ चुकी थी और उसने झुकी हुई तारा का चेहरा अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया और अपने चेहरे के नजदीक लाता बोला –
‘ कितनी खूबसूरत और जवान बेटी है तेरी , इतनी सुन्दर लड़की तो पुरे जिले में नहीं है … कँहा थी अब तक यह ? पहली बार देख रहा हूँ इसे गाँव में ‘ ठाकुर ने आँखों में चमक और चेहरे पर अजीब सी मुस्कान लाते हुए करमू से पूछा ।
‘ ठाकुर महाराज , तारा अपने ननिहाल में ही अधिक रही है और वंही पढ़ी पली है करमू ने थोडा रूखे शब्दों जबाब दिया।
तारा ने अपने चेहरे को ठाकुर के हाथो से मुक्त किया और दूर अपनी माँ के पास जा खड़ी हुई ।
‘ ठीक है तुम सब काम करो , मैं चलता हूँ .. करमू कोई जरूरत हो तो बता देना संकोच नहीं करना ‘ ठाकुर ने जाते हुए कहा पर वह अब भी तारा को घूरे जा रहा था जैसे की उसकी छवि आँखों में बसा लेना चाहता हो ।

” कलमुंहा, कीड़े पड़े इसको … कैसे घूरे जा रहा था तारा को’ ठाकुर के जाने के बाद शगुनी ने बड़बड़ाई ।

शेष अगले भाग में …

– केशव( संजय)

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

One thought on “कहानी : एक किसान की आत्महत्या – भाग 1

  • विजय कुमार सिंघल

    कहानी का पहला भाग रोचक रहा। आगे का भाग प्रतीक्षित है।

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