बादल छा गए
क्यों आज तेरी यादों के घनघोर बादल छा गए
क्यों आज महफ़िल में तेरी पंछी वो पागल आ गए
जो कह रहे थे तुझसे मेरी सलामती का किस्सा
सुनकर तेरे उदास होठ धीरे से मुस्का गए
नदियां भी अब सूनी पड़ी है उस पनिहारिन के बिना
हवाओं ने भी मोड़ा है रुख कोई भी कारण बिना
जो कह रहे थे की सदा हर रोज खिल खिलाएंगे
वो फूल तेरी यादों में एक रोज़ में मुरझा गए
क्यों आज तेरी यादों के घनघोर बादल छा गए
क्यों आज महफ़िल में तेरी पंछी वो पागल आ गए
तारे भी अब तो आते हैं हर रोज़ पता पूछने
हो गयी हमसे अगर कोई खता पूछने
कहाँ गया वो चाँद इस पूनम की रात को
तेरे आने की राह में वो पलकों को बिछा गए
क्यों आज तेरी यादों के घनघोर बादल छा गए
क्यों आज महफ़िल में तेरी पंछी वो पागल आ गए
क्यों आज तेरी यादों के घनघोर बादल छा गए….
वाह