मुक्तक/दोहा

टुकडे कागज के हुए

टुकडे कागज के हुए, देखो सारे नोट
काले धन पर हो गयी,सचमुच गहरी चोट
सचमुच गहरी चोट, मची है मारा मारी
भनक किसी को नही, हुई गुपचुप तैयारी
कह बंसल कविराय, कहें अब किससे दुखडे
घूमत हैं बेचैन, सेठ जी उखडे उखडे॥

बिस्तर में भी नोट है, तहखाने में नोट
खोटे सिक्कों है मगर, कैसे माँगे वोट
कैसे माँगे वोट, हुई धन माया कूडा
सभी पुराने नोट, हो गये जैसे तूडा
कह बंसल कविराय, चला ये कैसा नश्तर
काँटा बनकर हाय, चुभे नोटो का बिस्तर॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.