किलकि चहकि खिलत जात !
किलकि चहकि खिलत जात, हर डालन कलिका; बागन में फागुन में, पुलक देत कहका ! केका कूँ टेरि चलत, कलरव
Read Moreकिलकि चहकि खिलत जात, हर डालन कलिका; बागन में फागुन में, पुलक देत कहका ! केका कूँ टेरि चलत, कलरव
Read Moreज़ज़्बात के बिन, ग़ज़ल हो गयी क्या बिना दिल के पिघले, ग़ज़ल हो गयी क्या नहीं कोई मक़सद, नहीं सिलसिला
Read Moreये नीर नहीं है, आंसू हैं, जो इन आंखों से बहते हैं, क्या वही पुराने लोग हैं जो, सदियों से
Read Moreसैर करते हुए मैं जैसे ही दाहिनी ओर मुड़ी सहसा प्रकृति का परिदृश्य परिवर्तित हो गया दाहिनी ओर से लालिमा
Read Moreहमारे देश के मजदूर-किसान भी न..एकदम बौड़म हैं बौड़म। धेले भर की अकल नहीं और अकल के पीछे लट्ठ लिए
Read Moreतुझ पे दिल हारकर दिखाना है। नाम लब पर तेरा सजाना है । मेरे सागर नदी बनूं तेरी । सिलसिला
Read Moreअमलतास के पीले गजरे, झूमर से लहराते हैं। लू के गर्म थपेड़े खाकर भी, हँसते-मुस्काते हैं।। ये मौसम की मार,
Read Moreओ३म् चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद सृष्टि की आदि में उत्पन्न ईश्वर प्रदत्त ज्ञान है जो ईश्वर ने
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