कविता

मौन

मौन और स्थिर निशानी
निर्जीव की
जीवटता देखी है मैंने
जब हवा के जगाने से
पेड़ों के पत्ते गाने लगते हैं
यह जीवन है
स्थिरता पत्थर है
वो बेजान पत्थर
सड़क चौराहे इमारत पर खड़ा
ताकता रहता है
कब आएगा फूलों की माला चढ़ाने कोई
यह स्थिरता नहीं चाहिए
जीवन चलने का नाम है
सूक्ष्म जीव भी रेंगता है
जीवन को सार्थकता देता
खुद के वर्चस्व को बनाता
मौन धारण किए पत्थर
अक्सर दिशा बताते हैं
पेड़ के ऊपर पंछियों का कलरव जीवन है
नव पंखुड़ियों को सहलाता
भाव जीवन देते हैं ,बताते हैं ,महसूस करवाते हैं
मौन समर्पण सुना है ऐसे ही

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733