कविता

किसान अन्नदाता है

किसान के हाथ में कुदाल,
न हो क्या होगा?
सोचा है किसी ने,
किसान जो हल चलाता है,
मिट्टी से सोना उगाता है,
पर होता है गंदी राजनीति का शिकार,
उसको कितनी मेहनत करनी
पड़ती है ,
फिर भी एक नमक की डली,
के लिए उसे किसी का
मोहताज होना पड़ता है।
क्या होगा किसानो का,
जो अपनी धरती को,
छोड़कर जा रहा है।
कौन बचायेगा इन्हें,
जैसे डायनासोर खत्म हो गये,
वैसे ही किसान भी ख़त्म हो जायेंगे।
जब किसान न होगे तो अन्न कहा से आयेगा,
बंजर होती जमीन से सोना कहां पायेगा,
सूखा पडे, या अकाल,
मिटता है किसान।
गर खेती न होगी तो क्या रह जाएगा,
किसान का अस्तित्व।।

गरिमा

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384