कहानी

“भरोसा” अंतिम भाग

समय का चक्र इतनी तेजी से चल रहा था कि देखते ही देखते कितने साल निकल गए पता ही नहीं चला। अनु आठवीं क्लास में पहुंच गई। पढ़ाई में बहुत होशियार है वह। अनु अपनी पढ़ाई में व्यस्त और ईशा अपने ऑफिस के कार्य एवं उसके पश्चात अनु के साथ समय कहां से निकल जाता पता ही नहीं चलता। छुट्टियों में ईशा अनु को लेकर वही निकल पड़ती भ्रमण के लिए जहां अनु की इच्छा होती। कभी-कभी मुंबई निकल जाती, अपनी माता पिता एवं भाई से मिलने के लिए। अनु अपने नाना, नानी, मामा, मामी एवं भाई-बहनों से मिलकर बहुत आनंद का अनुभव करती क्योंकि दिल्ली में मां के अलावा सगा कहने वाला कोई था ही नहीं। उनके साथ मिलकर मुंबई घूमने में तो उसे बहुत ही आनंद आता।

इतनी कम उम्र में ईशा का अकेलापन तथा संघर्षपूर्ण जीवन देखकर उसके माता-पिता का ह्रदय द्रवित हो उठता। वे आपस में बातें करते “हमने तो कितना अच्छा लड़का देखकर उसकी शादी की थी। क्षितिज की बातों में कितनी मिठास थी। कितने अपनेपन से बातें करता था वह, परंतु.. वह ऐसा निकलेगा किसे पता था। हमने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसा समय भी आएगा। ऊपर से देख कर किसी का ह्रदय तो पढ़ नहीं सकते। जितना इंसान के वश में होता है, वह उतने ही प्रयास करता है, बाकी तो ईश्वर का खेल है।” क्षितिज के बारे में जानकार उनके हृदय में, उसके लिए इतनी घृणा भर चुकी है कि वे उसका नाम सुनना भी पसंद नहीं करते।
दोनों ने कई बार अपने ईशा से कहा भी “बेटा.. मुंबई में कोई नौकरी ढूंढो और यही चली आओ, हमारे पास। अनु को भी हमारा साथ मिल जाएगा। वह भी तो वहां पर अकेलापन महसूस करती होगी। यहां पर उसके ममेरे भाई बहन भी है।”
ईशा का जवाब होता “नहीं.. मां, नहीं.. पिताजी, यह मेरा जीवन है और मेरे जीवन की समस्याएं हैं। मैं अपने कारण किसी और को परेशान नहीं करना चाहती। क्या पता कल भैया, भाभी को हमारा यहां आना पसंद ना आए। मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती। संघर्ष के बिना जीवन का अर्थ ही क्या है? मुझे संघर्ष करने दीजिए। अनु मेरे साथ है ना, उसका सहारा ही बहुत है।”
ईशा के मम्मी पापा हार कर चुप हो जाते। उनकी आंखों के कोरों में बूंदे झिलमिलाने लगतीं। एक दीर्घ श्वास छोड़कर बस इतना ही कहते “ठीक है बेटा.. तुम्हें जिससे खुशी मिले वही करो, हम तुम्हारे साथ है। स्वयं को अकेला कभी मत समझना।”

एक दिन स्कूल से आकर अपनी माँ से कहने लगी”.. मम्मा, पापा मुझसे स्कूल में मिलने आते हैं तो मुझे अच्छा नहीं लगता है। आप उनसे कह देना मैं उनसे मिलना नहीं चाहती।”
अनु की बात सुनकर ईशा को लगा कि अनु अब बड़ी हो गई है। अच्छा, बुरा और पसंद, नापसंद समझने लगी है। उसने अनु को समझाते हुए कहा..” नहीं बेटा ऐसा नहीं करते। मिलने आते हैं तो मिल लिया करो। ज्यादा बातें नहीं करना है तो मत करो। थोड़ी देर मिलकर आ जाया करो।”
“नहीं मम्मा मुझे अपने घर ले जाने के लिए कह रहे थे, पर.. मैंने मना कर दिया। मैंने कह दिया मैं मम्मा से पूछे बिना कहीं नहीं जाऊंगी।”
यह तो तुमने बड़ी होशियारी वाली बात कही है। मुझे बिना बताए, मुझसे बिना पूछे कहीं जाना भी नहीं बेटा। मुझे तुम्हारी बहुत चिंता होती है।”
“मुझे पता है मम्मा,आप दिनभर इतनी मेहनत करती हो, मैं आपको परेशान नहीं करना चाहती। आपसे पूछे बिना कोई काम नहीं करना चाहती। मैं आपकी अच्छी बेटी हूं ना मम्मा?”
“हां बहुत अच्छी बेटी हो, बहुत समझदार हो, मुझे पता है। बहुत बातें कर ली,थोड़ी देर पढ़ाई भी कर लो। तब तक मम्मा तुम्हारे लिए खाना बना लेती है।”.. ईशा ने अनु का माथा चूमते हुए कहा।
“ठीक है मम्मा आप खाना बनाओ, मैं जाती हूं पढ़ने के लिए।”.. कहकर अनु अपने कमरे में चली गई।

अनु बहुत समझदार हो गई है। धीरे-धीरे सारी बातें उसको समझ में आ रही है। समय बड़ा बलवान होता है। समय ने उसे छोटी उम्र में ही सब कुछ सिखा दिया। अपनी पढ़ाई बहुत लगन से करती है, ताकि जीवन में कुछ बन सके और अपनी माँ को खुशी दे सके। इस बार दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा है। उसने अपनी मम्मा को एक गिफ्ट देने का विचार बना लिया है। अगर वह दसवीं में मेरिट में आती है तो मम्मा बहुत खुश होंगी, उसे पता है।

“अनु बेटा बहुत रात हो गई है, अब सो जाओ। सुबह फिर स्कूल जाने की तैयारी करनी पड़ेगी और मुझे भी ऑफिस जाना है। इतनी देर तक जागती रहोगी तो तबीयत खराब हो जाएगी।”.. ईशा थक गई थी और उसे नींद भी आ रही थी, पर.. क्या करें, जब तक अनु सो नहीं जाती तब तक वह कैसे सो सकती है? रात के 12:00 बज रहे थे तो उसने अनु से सोने के लिए कहा।
“नहीं मम्मा थोड़े से क्वेश्चंस और बचे हैं, मैं उसे पूरा करके ही सोऊंगी। आप थक गई होंगी आप सो जाइए।”
“तुम्हें पता है बेटा, जब तक तुम नहीं सोती हो तो मैं कहां सो पाती हूं। मेरा मन ही नहीं करता।”

दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा का परिणाम आया तो ईशा और अनु खुशी से झूमने लगे। अनु को मेरिट लिस्ट में आठवां स्थान प्राप्त हुआ। मां और बेटी के सपने साकार हो रहे हैं। दोनों की मेहनत रंग लाई है। आज दोनों की मन पाखी दूर आसमान की ऊंचाई को छूने के लिए लालायित है। ईशा ने अनु का माथा चूमते हुए उसे बधाई दी और कहा “बेटा आगे भी मेहनत करो और 12वीं की परीक्षा के साथ साथ आईआईटी जेईई में भी तुम्हें सफलता हासिल करना है! उसके लिए चाहे तुम्हें और मुझे कितनी ही मेहनत करनी पड़े हम पीछे नहीं हटेंगे।”
“जी मम्मा देखना आप मैं बहुत मेहनत करूंगी तो मुझे अवश्य सफलता मिलेगी। आपसे मेरा वादा रहा कि मैं अपना पूरा समय पढ़ाई में ही लगाऊंगी!” अनु ने खुशी से चहकते हुए कहा।

अनु की मेहनत रंग लाई। उसने आईआईटी जेईई में अच्छी रैंक हासिल की। खुशी से ईशा की आंखों की कोरें भीग गईं। आज वह बहुत गर्वित महसूस कर रही है।यह एक ऐसी खुशी है, जिसे पाकर वह चाहे भी तो अपने आंसुओं को रोक नहीं सकती। वह तो बाहर आने के लिए जैसे बेताब है। उसका त्याग, उसकी मेहनत, उसकी प्रार्थना आज रंग लाई है। उसने अनु के लिए जैसी जिंदगी का सपना देखा था, वह सपने पूरे होते दिख रहे हैं। वह सदैव यह चाहती रही कि अनु गर्व से सिर ऊंचा करके, स्वाभिमान के साथ जिए।

पेपर में अनु की तस्वीर देखकर क्षितिज को बहुत आश्चर्य हुआ और खुशी भी हुई आखिर अनु उसी की बेटी है। ईशा ने जो कहा था वह करके दिखा दिया । उसने अनु की परवरिश बहुत ही अच्छी तरह से की है। अनु से मिलकर उसे बधाई देने का उसने निर्णय लिया। अपनी गाड़ी उठाई और ईशा के घर की ओर चल दिया..

दरवाजे की घंटी बजी तो ईशा ने दरवाजा खोला तो सामने क्षितिज खड़ा था। वर्षों बाद क्षितिज को देख कर उसे समझ में नहीं आया कि वह क्या कहे क्या नहीं। उसके चेहरे पर कई रंग आए और गए। उसे समझ में नहीं आ रहा था अंदर बुलाए या उसे वापस भेज दे। फिर अपने आप को संभालते हुए उसने कहा..” तुम यहाँ पर..?
“हाँ.. अनु की तस्वीर पेपर में देखकर मुझे पता चला कि उसने आईआईटी जेईई में अच्छी रैंक हासिल की है तो मैं उससे मिलने और बधाई देने चला आया।”.. क्षितिज ने थोड़ा सा झिझकते हुए कहा।
“पर.. कोर्ट में यही बात हुई थी कि तुम कभी मेरे घर नहीं आओगे। तुम्हें अनु से मिलना है तो स्कूल में मिलोगे। यहाँ आने की हिम्मत कैसे की तुमने?”
“आज तो खुशी का दिन है, आज तो गुस्सा मत करो। हमारी बेटी ने हमें गर्वित किया है तो हमें मिलकर सेलिब्रेट करना चाहिए!”
“ओहो, हमारी बेटी.. बेटी की चिंता कब से होने लगी तुमको? अब जब बेटी ने कुछ हासिल कर लिया तो हमारी बेटी हो गई। पहले कभी सोचा था बेटी के लिए?”
“पुरानी बातें भूल जाओ ईशा। जिंदगी फिर से नए तरीके से शुरू कर सकते हैं, तुम चाहो तो।”
“तुम्हारे साथ फिर से जिंदगी शुरू करना है, तुमने सोच कैसे लिया? मेरी जिंदगी बहुत अच्छी है और मैं अपनी जिंदगी से बहुत खुश हूं। मेरी जिंदगी में खलल पैदा करने मत आया करो। रहा सवाल भूलने की तो मेरे घाव अभी भी हरे है। बहुत मेहनत और त्याग से मैंने अपनी बेटी की जिंदगी बनाई है, उसे बर्बाद करने के लिए मत आया करो। बहुत पहले ही मैं यह शहर छोड़ना चाहती थी, पर.. नौकरी के कारण छोड़ नहीं पाई! पर.. अब लगता है मुझे यह शहर छोड़ना ही पड़ेगा।”
“तो तुम मुझसे डर कर भाग जाना चाहती हो!”
“नहीं, डर कर नहीं.. मैं उन पुरानी सड़ी, गली, अंधेरी पगडंडियों को छोड़कर, एक नई उजली राह की खोज में जाना चाहती हूं। जहाँ पर तुम जैसे लोग ना हो, तुम्हारे जैसे सोच वाले ना हो, समझे। अब तुम जा सकते हो।”
“हाँ चला जाऊंगा पर, एक बार अनु से मिलना चाहता हूं, उसे बुलाओ।”
अनु अंदर से सारी बातें सुन रही थी, उसने अंदर से ही कहा..” मुझे किसी से नहीं मिलना है, मम्मा कह दीजिए चले जाएं! और आगे से मुझसे मिलने कभी ना आए, मैं अब 18 साल की हो गई हूं अपना निर्णय स्वयं लेने लायक और मेरा निर्णय यह है कि मैं किसी से मिलना नहीं चाहती।”.. अनु की बातों में आत्मविश्वास एवं दृढ़ता स्पष्ट झलक रही थी।

ईशा अंदर आकर मन ही मन सोचने लगी..” अब मुझे यह शहर छोड़ना पड़ेगा! अनु का एडमिशन मैं दिल्ली में नहीं कराऊंगी। उसका ऐडमिशन मैं मुंबई में कराऊंगी, जहाँ मेरे मम्मी, पापा और भाई भी है। भाई के दो बच्चे भी हैं अनु को उनका साथ मिल जाएगा। और मैं यहाँ की नौकरी छोड़ कर कोई और नौकरी के लिए अप्लाई करूंगी।”
“आप क्या सोच रही हो मम्मा। मैं हूँ ना आपके साथ, आप अकेली नहीं हो! अब डरो मत, हम क्यों डरे किसी से, हमने कोई गलत काम नहीं किया है!”
ईशा अनु को गले लगा कर रो पड़ी। वह सोचने लगी कि..” अनु कितनी बड़ी और कितनी समझदार हो गई है। अपने मम्मा को भी समझा लेती है, कितना बड़ा सहारा है यह मेरे लिए। मेरी अनु नहीं होती तो मैं कैसे जीती?”
“मैं डर नहीं रही हूँ बेटा, मैं सोच रही हूँ कि तुम्हारा एडमिशन मुंबई में करा देंगे। वहाँ पर नाना, नानी एवं मामा,मामी और उनके बच्चे हैं। उनसे मिलकर तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा। उन लोगों का साथ हो जाएगा।”
“हाँ मम्मा यह बात मैंने भी कई बार सोची है। पर मैंने कुछ कहा नहीं क्योंकि आप इतनी समझदार हो, इसलिए सारी बातें आप पर छोड़ दी। आप जैसा चाहोगी वैसा ही करेंगे।”

मुंबई के एक नई कंपनी से ईशा को ऑफर आया। अनु का भी ऑनलाइन ऐडमिशन आईआईटी मुंबई में हो गई थी। जाकर बस ऐडमिशन की बाकी फॉर्मेलिटीज पूरी करनी है। दोनों बहुत खुश थे, उधर ईशा के मम्मी, पापा भी बहुत खुश हैं। प्रतीक्षा कर रहे हैं कि कब दोनों आए और कब उनसे मिले।

माँ बेटी दोनों की आंखों में खुशी की चमक है। अनु इंजीनियरिंग कॉलेज में, वह भी आईआईटी, जाने के लिए बहुत उत्सुक है। बहुत सारे सपने हैं उसकी आंखों में, जिसे उसे पूरे करने हैं, अपने लिए और अपनी मम्मा की खुशी के लिए। मन में एक गुदगुदी सी हो रही है यह जानने के लिए कि कॉलेज लाइफ कैसी होती है। जाने की सारी तैयारी कर ली दोनों ने।

आज दोनों अपनी जिंदगी के सफर में एक नई दिशा, नई मंजिल की तलाश में कदम से कदम मिलाते हुए घर से बाहर निकल पड़ीं। दूर खड़ी मंजिल अपनी बाहें फैलाकर पुकार रही है, आओ हौसलें वालों.. तुम्हारा स्वागत है…!!!

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com