सामाजिक

भाई भतीजावाद, पक्षपात

Napotism जिसे आसान भाषा में कहें तो भाई भतीजा वाद, Favoritism
पक्षपात, Groupism गुटबाज़ी किसी को आगे बढ़ाना, किसी को पीछे धकेलना, किसी को ज़रूरत से ज़्यादा पसंद करना , किसी को नकारते रहना …..ये सारी चीजें तो शायद जन्म से ही शुरू हो जाती हैं घर परिवार, आसपास का माहौल, स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, रिश्तों में या फिर कोई भी अन्य कर्म क्षेत्र हो साहित्य, पत्रकारिता, मीडिया, फिल्में और सबसे ज़्यादा आभासी दुनिया के यंत्रों फेसबुक , इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि पर सबसे अधिक देखा और पाया जाता है।
और इसकी शुरूआत घर से ही हो जाती है भाई बहन, कज़न जिनसे अक्सर आपको नापा तोला जाता है कभी आदतों को लेकर, कभी शौंक, कभी पढ़ाई, कभी नम्बर, कभी उनके मैडल। इस तरह किसी न किसी बात को लेकर भेदभाव या तुलना होती रहती है।
उसके बाद कौन से कॉलेज में दाखिला मिलता है, कौन सा विषय। फिर नौकरी , पद, तनख्वाह।
ये सिलसिला कभी थमता नहीं है चलता ही चला जाता है जब तक आप जीवित रहते हैं। न भेदभाव खत्म होते हैं, न पक्षपात, न पसंद, न नापसंदगी।
हर कदम आपको साबित करना पड़ता है चाहे घर हो या बाहर, रिश्तों में हो या बाहर।
स्कूल कॉलेज में भी कुछ बच्चे अध्यापक अध्यापिकाओं के भी प्रिय अप्रिय होते है। ठीक इसी तरह आप जहां काम करते हैं वहां भी ये चलन रहता है उसी को प्रोमोशन, तनख्वाह में वृद्धि आदि सुविधाएं मिलती हैं।
और बात साहित्य की करें तो स्थापित साहित्यकार, रचनाकार नवांकुरों को आगे बढ़ने नहीं देते ताकि उनके नाम और शोहरत का सिक्का जमा रहे। समाचार पत्र, मिडिया या फिल्में हों सभी जगह एक सा ही हाल है। आपका हुनर , आपका व्यक्तित्व, आपकी लग्न, आपकी मेहनत सब एक तरफ रह जाता है पक्षपात, गुटबाज़ी, भाई भतीजा वाद के चलते।
और जब बात प्रख्यात आभासी यंत्रों की आती है तो सबसे ज़्यादा फेसबुक ऐसा माध्यम है जहाँ आपके जितने तेज़ी से मित्र बनते हैं बैरी उस से भी तेज़ी से। लोग मुँह पर कुछ पीठ पीछे कुछ। गुटबाज़ी का सबसे ज़्यादा असर यहीं नज़र आता है।
इन तनावों के चलते कुछ लोग झेल जाते हैं, कुछ टूट कर बिखर जाते हैं, कुछ डिप्रेशन में चले जाते हैं, कुछ गुमनामी में या कोई ज़िन्दगी से हार कर मौत को गले लगा लेता है।
अब इस पूरे घटनाक्रम में आखिर ज़िम्मेदार कौन है हमारा सिस्टम, हमारा समाज, लोग, घर परिवार या वो मुट्ठी भर लोग जो अपना *जाल बिछा अपना निशाना उन्हीं को बनाते हैं जो मासूम, सच्चे और कोमल दिल के होते हैं*। *अपने काम से अपनी मेहनत पर खुद पर भरोसा रखते हैं चाटुकारिता उनका स्वभाव नहीं होता वही लोग सबसे ज़्यादा शिकार होते हैं*Napotism, Favoritism, Groupism ….भाई भतीजावाद, पक्षपात, गुटबाज़ी* ।
— मीनाक्षी सुकुमारन

मीनाक्षी सुकुमारन

नाम : श्रीमती मीनाक्षी सुकुमारन जन्मतिथि : 18 सितंबर पता : डी 214 रेल नगर प्लाट न . 1 सेक्टर 50 नॉएडा ( यू.पी) शिक्षा : एम ए ( अंग्रेज़ी) & एम ए (हिन्दी) मेरे बारे में : मुझे कविता लिखना व् पुराने गीत ,ग़ज़ल सुनना बेहद पसंद है | विभिन्न अख़बारों में व् विशेष रूप से राष्टीय सहारा ,sunday मेल में निरंतर लेख, साक्षात्कार आदि समय समय पर प्रकशित होते रहे हैं और आकाशवाणी (युववाणी ) पर भी सक्रिय रूप से अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहे हैं | हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रहों .....”अपने - अपने सपने , “अपना – अपना आसमान “ “अपनी –अपनी धरती “ व् “ निर्झरिका “ में कवितायेँ प्रकाशित | अखण्ड भारत पत्रिका : रानी लक्ष्मीबाई विशेषांक में भी कविता प्रकाशित| कनाडा से प्रकाशित इ मेल पत्रिका में भी कवितायेँ प्रकाशित | हाल ही में भाषा सहोदरी द्वारा "साँझा काव्य संग्रह" में भी कवितायेँ प्रकाशित |