कविता

स्त्री और आग

स्त्री और आग की तुलना मत कीजिए
करना ही है तो स्वीकार भी कीजिए।
स्त्री और आग सृजक भी हैं
सरल और तरल भी हैं।
दोनों की अपनी अपनी विशेषता है
दोनों निर्माण करती हैं
तो पालन भी करती हैं।
दोनों किसी को नुकसान नहीं पहुँचाती।
मगर सिर्फ तब तक
जब तक इन्हें छेड़ा न जाय
इन्हें क्रोध न दिलाया जाय,
इन्हें इनकी औकात न दिखाया जाय।
वरना प्रलय निश्चित है,
जिस निर्माण की खातिर ये दोनों
जलती,खटती, जी जान लगा देती हैं,
तब अपनी परिधि से बाहर आ
अपना रौद्र रूप दिखाती हैं,
रोकने से भी नहीं रुकती हैं,
इनकी औकात क्या है?
प्रचंड प्रहार कर सबको बताती हैं,
तहस नहस कर डालती हैं
बड़ी मुश्किल से शांत होती हैं
अपने निशान छोड़ ही जाती है
फिर भी सबके काम ही आती हैं
स्त्री और आग जलाती भी हैं
तो भी हमारे किसी न किसी रूप में
आखिर काम भी आती हैं,
हमारे जीवन में अपनी महत्ता का
समयानुसार सबूत भी देती रहती हैं।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921