भाषा-साहित्य

बिन्दु और चन्द्रबिन्दु

अधिकतर लेखक बिन्दु और चन्द्रबिन्दु में अन्तर नहीं जानते। हालांकि सरकार द्वारा स्वीकृत मानक हिन्दी में चन्द्रबिन्दु का उपयोग आवश्यक नहीं रह गया है और उसकी जगह केवल बिन्दु का उपयोग करने की अनुमति दी गयी है, लेकिन शुद्ध हिन्दी में दोनों का महत्व है। इसलिए हम यहाँ दोनों का अन्तर स्पष्ट कर रहे हैं।

बिन्दु और चन्द्रबिन्दु दोनों में अन्तर जानना इसलिए आवश्यक है कि एक के बदले दूसरे का प्रयोग करने से शब्दों का अर्थ बदल सकता है, यद्यपि हर बार ऐसा नहीं होता। उदाहरण के लिए अन्त को हम अंत लिख सकते हैं, परन्तु अँत नहीं। ऐसे स्थानों पर बिन्दु का प्रयोग किया जाता है, जहाँ उच्चारण में आधा ‘न’ आ रहा हो। जैसे चन्द्र, बिन्दु, गन्ध, मन्द आदि। इनको हम बेखटके चंद्र, बिंदु, गंध, मंद आदि लिख सकते हैं, जो भले ही शुद्ध हिन्दी की दृष्टि से गलत लगे, लेकिन मानक हिन्दी के अनुसार सही हैं। लेकिन हम इनको चँद्र, बिँदु, गँध, मँद आदि नहीं लिख सकते।

अलग-अलग तरह के बिन्दु के उपयोग से शब्दों का अर्थ कैसे बदलता है, इसके लिए एक उदाहरण देना पर्याप्त होगा। इस वाक्य पर ध्यान दीजिए- ‘आओ हँस लें।’ यहाँ हँस एक क्रिया के लिए प्रयोग किया गया है। यदि हम इस वाक्य को इस प्रकार लिखें- ‘आओ हंस लें।’ तो ऐसा लगेगा कि हम हंस पक्षी को लेने की बात कर रहे हैं। इसलिए सही अर्थ के लिए दोनों वाक्यों को सही रूप में लिखना चाहिए।

बहुत से लोग मोबाइल या लैपटॉप पर चन्द्रबिन्दु टाइप करना नहीं जानते। इसलिए वे प्रायः चन्द्रबिन्दु लिखने के लिए ‘ ॅ’ की मात्रा लगाकर उस पर बिन्दु लगा देते हैं। यह बहुत गलत है। हिन्दी में ‘ ॅ’ या ‘ ॉ’ कोई मात्रा नहीं होती, हालांकि सरकारी मानक हिन्दी में कुछ अंग्रेजी अक्षरों जैसे बॉय, एॅण्ड आदि लिखने के लिए ये मात्राएँ जोड़ दी गयी हैं। इनका उच्चारण हिन्दी के औ तथा ऐ की मात्राओं की तरह ही होता है।

एक प्रतिष्ठित लेखिका ने माँ पर लिखे अपने निबन्ध में ‘माँ’ शब्द को बार-बार ‘मॉ’ लिखा था, जैसे ‘मॉल’ में लिखा जाता है। मुझे यह देखकर बड़ा क्रोध आया और आश्चर्य भी हुआ। हम कभी ऐसी मूर्खता न करें। यदि आपके मोबाइल या कम्प्यूटर में चन्द्रबिन्दु टाइप करने की सुविधा नहीं है, तो सीधे बिन्दु टाइप करें। इसलिए आप ‘माँ’ को निस्संकोच ‘मां’ लिख सकते हैं।

— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com