कविता

अय नील गगन के बादल

अय नील गगन के    बादल
सजनी की बन जा तुँ आँचल
पूरवाई संग संग चले    आना
सर की पल्लु बन सज   जाना

मेरी मेहबूब बनी है मेरी दुल्हन
उन्हें ना महशूश हो कोई उलझन
गगन से धरा पे चले तुम     आना
बिजुरी बन जुल्फों में  छिप जाना

जब कोई उन्हें ढुँढने भी आये
कोई इन्हें कभी भी ढुँढ ना पाये
राहों में बन जाना तुम हमराही
रखवाली करना बन कर सिपाही

सुख दुःख में उनका साथ निभाना
आगे पीछे सदैव चले ही     आना
बिना बुलाये कवच बन है   जाना
बुरी नजर से अनको तुम बचाना

रूपा बन जब करे वो श्रृंगार
दर्पण बन जाना तुम हर बार
कोई तुम्हें कुछ भी समझाये
बहकावे में कभी ना    आये

तुम चट्टान बन कर साथ निभाना
धूप पानी में छ्तरी बन बचाना
अय बदरी बन जा तुम पाती
दीपक जैसे संग हो      बाती

तुम पर अटुट विश्वास है हमारा
जन्मों जन्मों का तकदीर सितारा
मैं प्यासा हूँ धरातल का  निवासी
तृप्त करना जगत है जब प्यासी

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088