कविता

कविता

मैं समय हूँ
मैं चलता रहता हूँ
बिना थके, बिना रूके
भागता ही रहता हूँ।
मैं नित्य सबको जगाता हूँ
मैं ही सबको सुलाता हूँ
सबको उनके कर्मों के अनुरूप
हंसाता और रूलाता हूँ।
करता नहीं मैं किसी का ईंतजार
लोग करते हैं मेरा ईंतजार
कोई रोक न सका मेरी रफ़्तार
जिसने मेरी अहमियत समझी
उसने कि मेरी आदर और सत्कार।
— मृदुल शरण