धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

ईश्वरीय संकेतों की कद्र करें

विचारों की तरंगे कभी रुकती नहीं हैं। ये ब्रह्माण्ड के विभिन्न लोकों में दैवीय और दिव्य ध्वनियों के साथ अनवरत गतिमान रहती हैं। इन तरंगों में अनंत विषय समाहित होते हैं  जो समानधर्मा व्यक्तियों के मन-मस्तिष्क तक पहुंचते हैं।

            सृष्टि में अनादिकाल से लेकर अब तक जो गतिविधियां, घटनाएं घटित हुई हैं उन सभी के शब्द और चित्र आज भी सूक्ष्म रूप में विद्यमान हैं। अक्षर ब्रह्म है और यह क्षर अर्थात् नष्ट होने वाला नहीं। यही कारण है कि हमारा समूचा ब्रह्माण्ड विचारों की तरंगों और अतीत की ध्वनियों से भरा पड़ा है। ये विचार निरन्तर चक्रीय होते हैं और युगों के अन्तराल के बाद नवीन और परिष्कृत रूपों में आते रहते हैं।

            वैदिक सिद्धान्त के अनुसार पिण्ड से लेकर ब्रह्माण्ड तक सजातीय आकर्षण की थ्योरी काम करती है। इसके अनुसार समान विचार और गुण वाले व्यक्तियों तक उनके वैचारिक और मानसिक धरातल की सामगी्र और विचार कहीं न कहीं से पहुंच ही जाते हैं।

            इसी प्रकार एक प्रकार के विचारों वाले लोगों को उनके समान विचारों वाले लोग कहीं न कहीं मिल ही जाते हैं, चाहे वे दुनिया में कहीं भी क्यों न चले जाएं। अच्छे लोगों को अच्छे और बुरे लोगों को बुरे लोग मिल ही जाते हैं और इनमें अत्यन्त ही सहजतापूर्वक प्रगाढ़ मैत्री भी हो ही जाती है। यह मैत्रीपूर्ण स्थिति देश और काल की सीमाओं से परे होती है।

            यही हाल विचारों के साथ होता है। विचारों की असंख्य तरंगें दिन-रात परिभ्रमण करती रहती हैं। इनमें अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के विचार होते हैं। विचारों के कई भेद होते हैं लेकिन मुख्य रूप से दो-तीन प्रकार के विचारों को प्रधान माना गया है।

            एक वे हैं जिनकी किसी ने कल्पना की और इसके बाद कालान्तर में वे पूर्णता को प्राप्त कर गए। इन पूर्ण हो चुके परिपक्व विचारों का अलग लोक है जबकि दूसरे प्रकार के विचार वे हैं जिनके बारे में किसी ने किसी पुराने युग में कल्पना की होगी लेकिन वे पूर्णता को प्राप्त नहीं कर पाए।

            ऐसे अपरिपक्व विचार पूर्णता प्राप्त करने के फेर में जाने कब से चक्कर काटते रहते हैं और हर युग में कुछ-कुछ वर्षों बाद ऐसे सभी लोगों के जेहन में उतरने की कोशिश करते हैं जिनमें इन्हें पूर्णता देने का सामर्थ्य है। इन अपरिपक्व रह गए विचारों की श्रृंखला मनुष्यों को प्रेरित करती रहती है।

            तीसरा प्रकार उन दिव्य विचारों के लोक का होता है जो इन दोनों ही प्रकार के विचार लोक से कहीं ऊपर होता है और भगवान के सन्निकट होता है। इन विचारों का सम्प्रेषण जगत के कल्याण के लिए होता है। यों कह सकते हैं कि ये विचार भगवान की कल्पनाओं से उपजते हैं और भगवान स्वयं चाहते हैं कि मनुष्यों में जो समर्थ हैं उनके माध्यम से इन्हें  पूर्णता मिले और प्राणी मात्र तथा सृष्टि के कल्याण में इनका सदुपयोग हो।

            इन तीनों ही तरह के विचार व्योम में अहर्निश गतिमान रहते हैं और उन सभी लोगों तक पहुँचते हैं जिनका इनसे संबंध होता है अथवा जिनके माध्यम से ये पूर्ण और परिपक्वता प्राप्त कर सकते में समर्थ होते हैं।

            असंख्य विचारों का यह शाश्वत और मौलिकतापूर्ण प्रवाह बहता ही रहता है और उन सभी लोगों के आस-पास से होकर गुजरता है जिनसे इन विचारों को पूर्णता प्राप्त होने की संभावना हो अथवा इन विचारों से प्रेरणा पाकर उन लोगों को नई दिशा-दृष्टि प्राप्त होती है। विचार और व्यक्ति परस्पर एक-दूसरे पर आश्रित होते हैं। इनके माध्यम से ही एक-दूसरे को पूर्णता प्राप्त होती है।

            विचारों का संजाल पूरे आकाश में फैला हुआ है। जिसमें जितना सामर्थ्य होगा उतना विचारों का आकर्षण अपने आप होता रहेगा। या फिर दैवीय इच्छा से विचारों का प्रवाह हमारे मस्तिष्क की ओर होगा।

            इन विचारों के लिए यह जरूरी नहीं कि ये उसी समय आएं जब हम पूजा-पाठ या ध्यान कर रहे हों अथवा स्वाध्याय। व्योम से उतरने वाले विचारों के लिए कोई समय निश्चित नहीं होता। दिन या रात कभी भी, किसी भी क्षण ये विचार हमारे मस्तिष्क से होकर गुजर सकते हैं।

            हममें से हर किसी का अनुभव रहा है कि जीवन में कई बार मन-मस्तिष्क में अचानक कोई विचार कौंधा और हमने उस पर गौर नहीं किया तो वह गायब हो गया। इसके बाद हम पूरी जिन्दगी लाख कोशिश करते रहें तब भी दुबारा लौट कर हम तक नहीं पहुंच पाता।

            कई बार जो विचार हम तक पहुंचा और हमने उसकी उपेक्षा कर दी तो फिर वह विचार विशेष हमें कभी याद नहीं आएगा और थोड़े ही दिन गुजरने के बाद हम जब इस विचार की परिणति दूसरे के द्वारा अथवा दूसरी किसी जगह होती देखते या पढ़ते हैं तब हमें यकायक उसी विचार स्मरण हो जाता है जो विचार हमने उपेक्षित करते हुए ग्रहण नहीं किया। ऐसे में हमें हमेशा यह टीस बनी रहेगी कि यह विचार हम तक तक पहुंचा था और हम कुछ नहीं कर पाए।

            एक विचार हम तक पहुंचा और हमने ध्यान नहीं दिया तो वह हमारी ही तरह के किसी दूसरे समानधर्मा व्यक्ति के मस्तिष्क तक पहुंच जाएगा और इस तरह व्योम से पृथ्वी पर आया यह विचार सभी समानधर्मा व्यक्तियों के मस्तिष्क के द्वार पर तब तक दस्तक देता रहेगा जब तक कि कोई उसे ग्रहण कर अपने पास बांध न ले। देखा यह गया है कि जिस विषय या कर्म विशेष में हमारी दक्षता या रुचि होती है उसी से संबंधित विचार हम तक अनायास पहुंचते रहते हैं।

            जिस समय हममें से किसी व्यक्ति ने अनायास आने वाले विचार को गंभीरता से लिया और कागज के किसी पन्ने, डायरी, मेबाइल आदि में कहीं सूत्र रूप में अंकित कर दिया और इसे पूर्णता देने का मानसिक संकल्प ले लिया तो फिर यह विचार हमारी अपनी व्यक्तिगत पूंजी होकर रह जाएगा।

            इसके उपरान्त जब भी समय मिले या अनुलता हो तब ऊपर से आये इस विचार को मूर्त रूप देने का निश्चय करते हैं तब यह सूत्र अपने श्रेष्ठतम पूर्ण और प्रभावी आकार में ढलता हुआ ऐसा स्वरूप प्राप्त कर लेता है जिसे कालजयी माना जा सकता है।  इस तरह के अनायास विचारों पर कार्य करते समय न कभी हम रुकते हैं, न कोई बाधा आती है। बल्कि ईश्वरीय प्रवाह अपने आप चलता चला जाता है। और इसकी पूर्णता के बाद हमें भी इस तरह के महान कार्य में भागीदारी पर आश्चर्य होता है।

            इसलिये जब भी कोई विचार हमारे मन-मस्तिष्क में अनायास आये, उसे अपने पास कहीं भी लिखकर बांध लें और उसे पूर्णता देने के लिए प्रयास में जुट जाएं।

            एक बार अपने पास आये विचार को पकड़ लिया तो फिर वह आगे नहीं भागेगा और उसकी यात्रा हम तक पहुंच कर ही समाप्त हो जाएगी। फिर यह विचार हमारे माध्यम से पूर्णता प्राप्त करने के बाद ही सुनहरे स्वरूप और प्रभाव के साथ वापस लौटेगा।

            ख़ासकर लेखकों और कवियों, रचनात्मक और आध्यात्मिक कार्य करने वाले लोगों और संत-महात्माओं, साधकों तथा ध्यानियों के पास इस प्रकार के विचारों का प्रवाह ज्यादा होता है। जो मनुष्य जिस अनुपात में सात्विक होते हैं उनके पास विचारों की पहुंच ज्यादा तीव्रता के साथ होती है लेकिन जो लोग सदाचारहीन, विधर्मी और मनो-मालिन्य से भरे होते हैं उनके पास इस प्रकार के विचार कम ही पहुंच पाते हैं अथवा कभी नहीं पहुंचते।

            ढेरों लेखक, कवि, चित्रकार, सर्जक, वैज्ञानिक और आविष्कारक यह कहते हुए मिल जाएंगे कि अमुक थीम उनके दिमाग में भी आयी थी मगर वे कुछ कर नहीं पाए। यह ध्यान रखना होगा कि जो थीम हमारे मस्तिष्क में अनायास आती है वह ऊपर से आती है और इसके पीछे पक्के तौर पर ईश्वरीय विधान होता है। ईश्वर यह काम हमारे माध्यम से कराना चाहता है।

            हमने इस थीम को पकड़ कर काम शुरू कर दिया तो ईश्वरीय शक्तियां हमारी मदद करेंगी और हमारे कार्य की पूर्णता पर महान आश्चर्य होगा कि यह कार्य हमारे माध्यम से कैसे हो सका। फिर ईश्वरीय संकेत से प्राप्त जो भी काम होगा वह युगों तक याद रखने वाला होगा। जो सृजन होगा वह कालजयी होगा और इन दिव्य विचारों की पूर्णता वाला हर काम हमें इतना यशस्वी बना डालेगा कि जिसकी कल्पना तक भी नहीं की जा सकती।

            इसलिये आज से ही प्रण कर लें कि दिन या रात में किसी भी समय जो भी विचार अनायास हमारे मस्तिष्क तक पहुंचें उन्हें कहीं नोट कर लें और अपना बना लें। ऐसा करने पर ईश्वरीय विचारों की हम तक पहुंच का प्रवाह उत्तरोत्तर तीव्रतर होता जाएगा और इससे हमें भी अनुपम ईश्वरीय कृपा का प्रत्यक्ष अनुभव होने लगेगा जो हमारी जीवनयात्रा की पूर्णता और आशातीत सफलता में भी मददगार साबित होगा।

            प्राचीनकाल में ऋषि-मुनियों को असम्प्रज्ञात समाधि और गहन ध्यान में जो विचार आते थे उन्हें ही मंत्रों की संज्ञा दी गई और हजारों साल बाद भी इन मंत्रों की गूंज बनी हुई है। चूंकि उस समय दैव वाणी संस्कृत ही थी और ऐसे में मंत्रों को संस्कृत भाषा मिली। ईश्वरीय संकेतों और विचारों के लिए भाषा और व्याकरण का कोई मूल्य नहीं होता। ये भाव प्रधान होते हैं।

            अपने पास हमेशा पेन-पेंसिल और छोटी डायरी रखें और जैसे ही कोई विचार अनायास हमारे मस्तिष्क का दरवाजा खटखटाये, इसे नोट कर लें। आजकल मोबाइल का जमाना है। हमारे पास हर क्षण मोबाइल रहता है। उसमें भी नोट करने की आदत बना लें। इन विचारों को अपना कर हम आगे बढ़ेंगे तो ईश्वरीय प्रवाह के प्रति हमारी ग्राह्यता का ग्राफ निरन्तर बढ़ने लगेगा और हो सकता है किसी समय भगवान की अहैतुकी कृपा से भावी गतिविधियों के संकेत पाने का सामर्थ्य भी हममें त्रिकालज्ञ के रूप में आ जाए।

डॉ. दीपक आचार्य

*डॉ. दीपक आचार्य

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