मुक्तक/दोहा

दोहे

योग हरे चिंता सभी,काटे सकल कलेश |
तेज बढ़े स्फूर्ति हो,आलस रहे न लेश ||

तन मन मे उत्साह हो,छाये नव उल्लास |
रोग दोष सब दूर हों,छाये नहीं विषाद ||

योग शक्ति अभ्यास है ,ऐसा सरल उपाय |
नेत्र ज्योति बढ़ती रहे,यौवन कभी न जाय ||

काया कांति बनी रहे,कभी न रोग सताय |
प्राणायाम करो सदा,तो जीवन हर्षाय ||

मन उमंग बढ़ती रहे,जरा रहे अति दूर |
योगी युत जीवन जियो ,सुख पाओ भरपूर ||

योगा प्राणायाम में ,होती शक्ति अपार |
हो विरक्ति दुष्कर्म से,घटे पाप का भार ||

गीता में श्री कृष्ण ने ,दिया योग का ज्ञान |
अर्जुन के मन से मिटा ,तमस और अज्ञान ||

उत्तम साधन है यही,रखता हमें निरोग |
भक्ति शक्ति की राह का,सुंदर सफल प्रयोग ||

दर्शन ने भी योग को ,माना सबसे खास |
जो अपनाते योग को, होते नहीं उदास ||

योग दिवस हो नित्य ही,ऐसा करो प्रचार |
रोग महामारी मिटे,’मृदुल’ बने व्यवहार

गुरु पातञ्जलि ने दिया ,अनुपम अद्भुत ज्ञान |
इसको अपना कर मनुज,हो जाये बलवान ||

बृह्म मुहूरत जो उठे ,और करे नित योग |
प्राण वायु करते ग्रहण , नही सतावे रोग ||

प्रात: की बेला मधुर , बहे सुवासित वायु |
तन मन ऊर्जावान हो, और बढ़ावे आयु ||

नित्य योग अपनाइये , काया रहे निरोग |
मिट जायेंगे दोष सब , भागे जड़ से रोग ||

योग सरीखे मीत से, रहे व्याधि भयभीत |
स्वस्थ रहे काया सकल ,यह सच्चा मनमीत|

आसन प्राणायाम से ,होता नित कल्याण |
शक्ति बढ़े कौशल बढ़े,मिट जाए अज्ञान ||

चित्त वृत्ति स्थिर रहे , स्वस्थ रहे हर तंत्र |
योग जगत कल्याण का ,पूरक पूरण मंत्र||

योग जीवनी शक्ति है ,योग मुक्ति का द्वार |
है अनुलोम विलोम की,महिमा अमित अपार ||

स्वास्थ लाभ चाहो अगर ,इसे बनालो मीत |
जन-जन में आनंद हो ,गूंजे सुखमय गीत ||

“योगसूत् ” ने दे दिया ,ऐसा अनुपम ज्ञान |
इसको गर अपना लिया ,सदा बढ़ेगा मान ||

महिमा प्राणायाम की,वर्णित आठो याम |
विश्व गुरु भारत बना,गूँजा जग में नाम ||

नियम ध्यान जप योग से ,रोग रहें सब दूर|
बलशाली तन मन बने,सुख होवे भरपूर ।।

योग साधना से सदा ,होता है कल्याण ।
पीड़ा दूर रहे सदा ,करे जो योगा ध्यान ।।

शुद्ध हवा में बैठ के,कर अनुलोम -विलोम ।
और भ्रामरी की क्रिया,खोल सभी दे रोम ।।

काया को निर्मल करे,योग सुखों की खान ।
स्फूर्ति तन मन बढ़े,जीवन गति आसान ।।

समझो अब इस बात को,अपनाओ सब योग ।
भोग बढ़ाता रोग है,योग भगाता रोग।।

आसन प्राणायाम संग ,करें समाधी ध्यान।
तन मन भी पावन बने,मानव बने सुजान ।।

हर अवसाद मिटा सकें,भरे नवल उत्साह ।
योग शक्ति दृढ़ता भरे,साफ दिखे हर राह ।।

नयन ज्योति न क्षीण हों,श्रवण रन्ध्र खुल जाय।
जोड़ -जोड़ गतिमय रहे,उत्तम काया पाय ।।

हो बलिष्ट तन मन सदा,अनुशाषित हों काम,
न प्रमाद आलस टिके,सुख का है यह धाम ।।

आधि व्याधि टिकती नहीं,जो करता है योग ।
विजयी हो हर क्षेत्र में ,जीवन जिये निरोग ।।

नियमित योग करो सभी, सदा रहोगे स्वस्थ ।
जीवन संकट मुक्त हो ,हो जाओ आश्वस्त।।

ऋषि मुनियों की खोज यह,है विशुद्ध विज्ञान ।
अष्ट योग अपना मनुज ,रख खुद अपना ध्यान ।।

हर एक आसन की क्रिया,तन मन करे बलिष्ट ।
योग शास्त्र कहता यही,कहे पारखी दृष्टि ।।

समझो अब इस बात को,रोज करो सब योग ।
विषम समय यह सम करे,योग भगाए रोग ।।
©®मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016