कविता

रख हौसला तू जारी रख प्रयास

तू अकेला ही बहुत है ज़माने में

रख हौसला तू जारी रख प्रयास

निडरता से चलता चल मंजिल की ओर

मत बैठ यूँ अकेला हो कर उदास
रास्ते में कांटे होंगे सम्भल कर चल
कमज़ोर मत समझ तुझमें है बल
हिम्मत को ढाल बना ले अपनी
हौसलों का छाता ओढ़ कर निकल
मुश्किलों से मत होना हताश
रख हौसला तू जारी रख प्रयास
बुलंद हौसलों को तेरे
कोई क्या ही रोक पायेगा
यह रेत का नहीं महल
जो यूँ ही ढह जाएगा
तूफानों को चीर आगे बढ़ होना मत निराश
रख हौसला तू जारी रख प्रयास
पग पग पर होगा तुझसे विश्वासघात
वह मुंह में राम बगल में छुरी लेकर चलेंगे तेरे साथ
मौका मिलते ही करेंगे पीछे से वार
घबराकर छोड़ना नहीं तू हौसलों का हाथ
बुलंद हौसले देख कर हो जाएंगे वह हताश
रख हौसला तू जारी रख प्रयास
जुबान उनकी बहुत मीठी होगी
बात बात पर शहद टपकाएँगे
रास्ता रोकेंगे कई चालें चलेंगे
पर तुझको गिरा न पाएंगे
बैठे हैं हर तरफ लगाए घात
रख हौसला तू जारी रख प्रयास
— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र