गीतिका/ग़ज़ल

गजल

ये जो गुम तन्हाई है, 

ये कितनी हरजाई है।

हमने देखा दुनिया में, 

कितनी जीवन खाई है ।

ये तो हैं मगरूर बहुत, 

कितनी रुप बनाई है ।

दिल ने दिल को तोड़ा है, 

ऐ  भी  तो  बेवफाई  है।

गम को छुपा न पाई  है ,

आंसू भी खुब बहाई है ।

— शिवनन्दन सिंह 

शिवनन्दन सिंह

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