सामाजिक

वैमनस्य आख़िर क्यूँ

एक दौर था जब लोगों के दिल में रिश्तों की अहमियत हुआ करती थी, अपनों के बुरे वक्त पर दोस्त, रिश्तेदार अपना सबकुछ कुर्बान करने की भावना रखते थे। आज जुड़ने से ज़्यादा टूटते रिश्ते ही देखने को मिलते है। पल भर के बाद क्या होगा पता नहीं सबकुछ यहीं पर छोड़ कर खाली हाथ जाना है, फिर क्यूँ हम ज़िंदगी को इतनी उलझी हुई बना लेते है? रिश्ते निभाने में हम कंजूस होते जा रहे है, या यूँ कहो स्वार्थी होते जा रहे है। आज हर रिश्ते ने स्वार्थ और लालच की चद्दर ओढ़ ली है, हर रिश्ता जरूरत पर टिका होता है जरूरत ख़त्म रिश्ता भी ख़त्म। हर छोटी बात पर क्यूँ रुठने मनाने में या अहं और अभिमान को पालते रिश्तों को आज़माने में खर्च कर देते है। क्यूँ थोड़ा सा झुक कर रिश्ते को बचाने की कोशिश नहीं करते। कभी-कभी तो बात में दम नहीं होता और लाठियां चला लेते है।

पर अकड़ पर लगाम कसते ज़रा अपनत्व दिखाकर देखिए अच्छा लगेगा। अगर आपको किसीकी याद सताती है तो फोन कर लीजिए, बात कर लीजिए मन हल्का हो जाएगा। अगर मिलने का मन है तो निमंत्रण भेज कर बुला लीजिए या खुद मिलने चले जाए। और हाँ किसीकी भावनाओं को बखूबी समझते हो तो जता भी दीजिए रिश्ते में ताज़गी भर जाएंगी। रिश्तों की भी जरूरतें होती है। प्यार, परवाह और एक दूसरे के प्रति आत्मिक भाव का खाद रिश्ते को हरा भरा रखता है।

अगर किसीको कुछ पूछना चाहते हो तो पूछ ही लिजीए समय बड़ा बलवान है कब फिसल जाएगा पता ही नहीं चलेगा। किसीकी कोई बात पसंद नहीं तो मुँह पर बोल दीजिए नासूर ना बन जाए कहीं  छोटी सी ख़लिश। मन में किसीके प्रति नाराज़गी है तो गीले सिकवे भूल कर मान जाइए, जो पल मिले है ज़िंदगी से उसे हंसी खुशी बिताइये।

किसीकी कोई बात पसंद है तो स्टेटस अपडेट कर लीजिए मन के भाव का प्रदर्शन किया जाए तो रिश्ते में नमी बनी रहती है। एक तो छोटे से मोबाइल ने वैसे भी रिश्ते छीन लिए है। पहले घर का वातावरण हंसी, खुशी, बातें और बहस से सराबोर रहता था। अब हर कोई आभासी दुनिया में व्यस्त है। साथ तो होते है नज़दीक नहीं होते, पारिवारिक रिश्ते भी डिज़ीटल बनते जा रहे है।

किसीसे कुछ चाहिए तो बेजिज़क मांग लीजिए संकोच मन को मार देगा अपनों से हक जताने में कैसी शर्म। और किसीको प्यार करते हो तब ज़रा भी देर मत करो सीधा जाकर इकरार कर लो ट्रेन छूट ना जाएं बोल दीजिए “आइ लव यू” पुनर्जन्म का पता नहीं फ़िलहाल एक ही ज़िंदगी मिली है तो क्यूँ ना सरल और सहज तरीके से जिया जाए।

— भावना ठाकर ‘भावु’ 

*भावना ठाकर

बेंगलोर