लघुकथा

लघुकथा – उड़ान का आनंद

 उसका पासपोर्ट बन कर आ गया था । फिर भी ना जाने क्यों वीज़ा के लिए अप्लाई करने से पहले दिलो-दिमाग में उथल-पुथल मची थी।  जिस उड़ान की चाहत में ना जाने कितनी मन्नतें मंदिरों में की थी । पासपोर्ट मिलते ही वह शिथिल सी क्यों होने लगी ? भैया कब से उसे अपनी कंपनी में सीनियर मैनेजर के पोस्ट पर बिठ़ाना चाहते हैं। भैया की वज़ह से भारी-भरकन पैकेज उसे मिलने वाला था ।  पासपोर्ट हाथ में है,फिर भी उदासी दूर नहीं हो पा रही है क्यों ?

कारण तलाशने लगी , धीरे-धीरे भावनाओं के तार आपस में जुड़ते चले गए । माँ पापा के सिवा कोई रिश्ता नहीं है आसपास , दादी की तो उसमें जान बसती है ! सभी आज तक हमारी खुशियों की खातिर अपनी खुशियों का हवन करते रहे हैं । क्या  दादी के जीवन-संध्या पूजन-काल में मेरा विदेश जाना अंतिम आहूति साबित होगी ?  सोच कर ही रोम-रोम सिहर उठा । नहीं नहीं उड़ान सिर्फ सात-समंदर  पार ही नहीं मन के आँगन में भी संभव है । मन के कोने में मंदिर सी घंटियाँ बजने लगी । 

नहीं ! मुझे कहीं नहीं जाना है, दादी की चाहत पहले पूरी कर लूँ । माना कि दादी के पंख थक गए हैं लेकिन मेरे पंख तो बलशाली हैं । फटाफट पैकेज टूर वालों का नंबर तलाशने लगी । कमरे से बाहर निकल कर माँ पापा से मुखातिब हो– “माँ पापा और दादी आप सब लोग यात्रा की तैयारी शुरू कर दें ।” यह सुनते ही सबके चेहरे पर घोर उदासी छा गई । 

दादी ने मुंह खोला– “जा बिटिया तेरी उड़ान में हम सभी  तेरी ताकत बनेंगे, बाधक नहीं ।”

“हाँ दादी आप सही कह रही हैं, अकेले भला कोई टूर पर जाता है ! हम सभी मथुरा वृंदावन की सैर पर जा रहे हैं, उड़ान का आनंद अकेले में कहाँ ?”

— आरती रॉय

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - arti.roy1112@gmail.com