लघुकथा

पति का करवा चौथ

पिछले कुछ वर्षों से लीना का मानसिक संतुलन खराब चल रहा था। जिसकी वजह से उसका परिवार अस्त व्यस्त हो गया, उसका पति लाखन उसके इलाज के चक्कर में चक्करघिन्नी बन गया था, उसका व्यवसाय चौपट होता जा रहा था, क्योंकि वो दुकान पर समय ही नहीं दे पा रहा था। बच्चों की शिक्षा भी राम भरोसे ही चल रही थी ।इन सबके बावजूद लाखन को भरोसा था कि एक दिन लीना फिर से अपना सामान्य जीवन जी सकेगी और फिर सब ठीक हो जाएगा। पर कब ……। इसका उसके पास कोई जवाब नहीं था। हर साल की तरह ही इस बार भी करवा चौथ आ गया। लीना जब तक स्वस्थ थी, बड़े मनोयोग से व्रत रखती थी, पूजा पाठ करती थी। लेकिन अब तो उसे जब अपना होश नहीं तो तीज त्योहार की बात भला कैसे सोच सकती है।‌ इस बार करवा चौथ से थोड़े दिन पूर्व उसकी सरहज ने फोन कर लाखन से आग्रह किया कि जीजा जी, क्यों न इस बार आप दीदी की जगह ये व्रत रख लें।शायद कुछ हो सके और नहीं भी हो तो आखिर पतियों का भी तो कोई धर्म होता है, हम पत्नियां हमेशा पतियों के लिए तो व्रत, अनुष्ठान करती ही हैं, फिर हम यदि इस हालत में न हो तो क्या आप लोगों का फ़र्ज़ नहीं है कि कभी पत्नियों के लिए ,उनके स्वास्थ्य, लंबी उम्र के लिए और खुशी के लिए कुछ करें, आखिर आप लोगों को भी तो यह पता चलना चाहिए कि दिन दिन भर कभी तो २४-२६ -३० घंटे बिना अन्न जल के भी हम दिन भर खटते हैं।एक दिन भी हमें फुर्सत नहीं मिलती। इसका अहसास आप मर्दों को कभी नहीं होता, मौके बेमौके आप लोग भी तो इसका अनुभव कीजिए। लाखन ने बिना किसी तर्क वितर्क के हामी भर दी और अपनी सरहज से पूछ पूछ कर वह व्रत की औपचारिकताएं निभाता रहा। आखिर चंद्र देव के दर्शन हुए। बेटियों की मदद से वो लीना को छत पर ले गया।और जैसे जैसे उसकी सरहज ने उसे बताया लीना को पास में लकड़ी की एक कुर्सी पर बैठाये, वो करता रहा। फिर छलनी में जब वो लीना को निहार रहा था, तब अचानक लीना ने धीरे से हाथ बढ़ाकर छलनी उसके हाथ से लिया और बोल पड़ी में क्या कर रहे हो तुम। ये मेरा काम है। फिर अपने कपड़े की ओर देख कर चौंक पड़ी अरे ये कैसे कपड़े पहन कर मैं पूजा करने आ गई। फिर कुछ सोचते हुए बोली मगर मैं यहां आई कैसे? तब लाखन ने बताया कि तुम्हें हम लेकर आए हैं और आज तुम्हारे लिए हमने व्रत भी रखा है। लीना भड़क गई तो जनाब बड़े समझदार बन गये हैं।न खुद ढंग के कपड़े पहने हैं और न मुझे पहनने दिया, इतनी जल्दी पड़ी थी। चलो खैर करवा माता तुम्हारी मनोकामना पूरी करें। फिर हमेशा जो कुछ खुद करती थी, वो सब धीरे धीरे किया और बेटियों से कहा चलो तुम लोग मुझे थोड़ा सहारा दो, तो मैं भी परिक्रमा कर लूं, फिर तुम्हारे पापा का व्रत भी तुड़वाना है। चंद्रमा को हाथ जोड़ शीश झुकाकर लाखन ने नमन किया और लीना को अपनी बांहों में समेट लिया।उसकी आंखों से अश्रु धारा बह निकली। दोनों बेटियां भी मां से लिपट गई। लाखन को विश्वास हो गया कि उसका करवा चौथ का व्रत सफल हो गया। अब उसकी जीवन साथी फिर से जरुर सामान्य जीवन जी पायेगी। उसके बाद वो सबसे पहले अपनी सरहज को ये खुशखबरी देने के लिए अपना मोबाइल निकाल कर फोन करने लगा।

*सुधीर श्रीवास्तव

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