लघुकथा

इंसानियत

वेदना से अमर कराह रहा था। उसे होश में आया देख सिरहाने चिंतित बैठे अजनबी के चेहरे पर मुस्कान खिल गयी। उससे नाम पता जानने को उत्सुक था वह। 

” मैं यहां?” आश्चर्य चकित हो उसने अजनबी से पूछा।

दुर्घटना की जानकारी, सारी वारदात जान आंखें नम हो गयी। अजनबी के हाथ अपने हाथों ले उसने धन्यवाद देना चाहा।

कमजोरी के कारण ज्यादा बोल न पाया। अपना नाम पता बताकर उसने आंखें मूंद ली। याद आया उसे वह खतरनाक हादसा। रक्त की फुहारें, दुर्घटना में चक्कर आकर गिर जाना। वह घर लौट रहा था कि किसी ने बीच राह उसे टक्कर मार दी थी। उसके आगे वह कुछ नहीं जानता।

” मेरी बाइक कहां है? चेन, अंगूठी, पर्स, बैग?”

आगंतुक मुस्कुराया,

” मिल जाएगा सब। पहले घर का अता-पता बता दो।”

सीधे-साधे इंसान में अमर को भगवान के दर्शन हो रहे थे।

लुटेरों ने अपना काम किया था।

कोई उसे तड़पते छोड़, भाग गया था।

इंसानियत पर कालिख पोतता कोई शैतान, मानवता को लज्जित कर रहा था।

अजनबी देवदुत इंसानियत को गौरवान्वित कर रहा था।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८